एएआई भारत सरकार का विस्तारित उपक्रम; श्रमिकों को नियुक्त करते समय पिछले दरवाजे से प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट की जस्टिस समीर जैन की सिंगल जज बेंच ने हरि शंकर शर्मा और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मामले में एक सिविल रिट याचिका पर फैसला करते हुए यह माना कि भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) भारत सरकार का विस्तारित उपक्रम है, श्रमिकों को इसमें शामिल करने और नियमित करने की प्रक्रिया में पिछले दरवाजे से किसी भी प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
तथ्य
याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादी भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। याचिकाकर्ता प्राधिकारण को सफाई और बागवानी जैसी दैनिक रखरखाव की सेवाएं प्रदान कर रहे थे। उन्हें एक ठेकेदार/प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से नियोजित किया गया था। उन्होंने तर्क दिया था कि सेवा की अवधि के दरमियान याचिकाकर्ताओं के काम पर प्रतिवादी का ही प्रशासनिक नियंत्रण था।
उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के कार्य संबंधित अधिकांश दस्तावेजों पर प्रतिवादी ने ही प्रतिहस्ताक्षर किए थे। इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं के पक्ष में रोजगार का निहित अधिकार अर्जित होता है। याचिकाकर्ताओं ने बहाली और नियमितीकरण की प्रार्थना करते हुए उपरोक्त सिविल रिट याचिका दायर की थी।
प्रतिवादी ने तर्क दिया था कि याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी संबंध का अभाव है। याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रतिवादी द्वारा जारी किए गए किसी भी नियुक्ति पत्र को रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया था। इसके अलावा, याचिकाकर्ता के पास वर्तमान याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे उस अनुबंध के तीसरे पक्ष हैं, जो प्रतिवादियों और संबंधित ठेकेदार/प्लेसमेंट एजेंसी के बीच दर्ज किया गया था।
निष्कर्ष
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जारी किसी भी नियुक्ति पत्र को रिकॉर्ड नहीं रख पाए। इसके अलावा, याचिकाकर्ता उस अनुबंध के केवल तीसरे पक्ष और बाहरी थे, जो मुख्य रूप से भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण और संबंधित प्लेसमेंट एजेंसी/ठेकेदार के बीच दर्ज किया गया था।
अदालत ने केके सुरेश और अन्य बनाम भारतीय खाद्य निगम के फैसले पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि संविदात्मक नियुक्ति प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से लगे श्रमिकों के पक्ष में रोजगार का निहित अधिकार नहीं बनाती है।
अदालत ने गणेश दिगंबर झांभरुंडकर और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के फैसले पर भरोसा किया, जो संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण के नकारात्मक दायरे के संबंध में कानून की स्थापित स्थिति को आगे बढ़ाने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
उपरोक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि संविदा कर्मचारियों द्वारा लंबे समय तक अपनी सेवाएं प्रदान करने का तथ्य उनके पक्ष में रोजगार का निहित अधिकार नहीं बनाएगा।
अदालत ने आगे यह भी कहा, “प्रतिवादी-भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण भारत सरकार का विस्तारित उपक्रम है और इसलिए, श्रमिकों को अवशोषित और नियमित करते समय, पिछले दरवाजे से प्रवेश की किसी भी प्रकार की अनुमति नहीं दी जा सकती है। बल्कि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के आलोक में एक विज्ञापन के माध्यम से सार्वजनिक डोमेन में एक उचित चयन प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, सिविल रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस नंबर: सिविल रिट पीटिशन नंबर 4586/1999
केस टाइटल: हरि शंकर शर्मा एवं अन्य बनाम यूओआई और अन्य