अगर पुलिस आपराधिक अभियोजन से मुक्त नहीं तो वकील भी इससे मुक्त नहीं: गुजरात हाईकोर्ट ने वकीलों के खिलाफ़ मुक़दमा रद्द करने से किया इनकार
गुजरात हाईकोर्ट ने सूरत के वकील और सोशल एक्टिविस्ट मेहुल बोगरा के खिलाफ़ ड्यूटी रद्द करने से इनकार किया।
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस निर्जर देसाई ने टिप्पणी की,
"अगर पुलिस आपराधिक अभियोजन से मुक्त नहीं है तो अभियोजन भी इससे मुक्त नहीं है।"
बोगरा ने अपनी खिलाफ शिकायत रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया। मुहम्मद ने BRTS कॉरिडोर में चल रहे पुलिस स्टिकर और काली फिल्म लगे वाहनों को रोकने के संबंध में एफआईआर दर्ज की।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस देसाई ने सवाल उठाते हुए कहा,
"हर बार ऐसी घटनाएं सिर्फ आपके साथ ही क्यों होती हैं। यह नाम मैंने अखबार में पचास बार पढ़ा है। आप क्या ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं या प्रचार के लिए। हर बार आपको ऐसा क्यों लगता है कि आप किसी और मामले को नहीं बल्कि सिर्फ पुलिस विभाग के मामले को जायज ठहराते हैं।"
जस्टिस देसाई ने स्पष्ट किया कि हालांकि अदालत ने पुलिस विभाग के खिलाफ आरोप लगाने वाली कुछ मांगों पर विचार किया लेकिन वह आरोपों की प्रकृत पैगंबरों और उनके अतीत पर विचार किए बिना किसी मामले पर विचार नहीं करेगी।
बोगरा के वकील ने तर्क दिया कि बोगरा पर हमला किया गया और उन्होंने पुलिस के खिलाफ टीम दर्ज कराई, लेकिन पुलिस ने ढाल के तौर पर उनके खिलाफ टीम दर्ज कर ली।
जस्टिस देसाई ने किसी राहत देने में असमर्थ होते हुए कहा,
"अगर आप वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं तो क्या इसका मतलब यह है कि आपको कुछ भी करने का लाइसेंस है? पुलिस से बहस करने के बजाय आपको कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। खड़ा होना चाहिए। उक्त कार्य अपराध का गठन करता है और मैं इसे रद्द नहीं करने जा रहा हूं।"
जज की टिप्पणी के बाद बोगरा के वकील ने याचिका वापस ले ली।
केस टाइटल- मेहुल मनसुखभाई बोगरा बनाम गुजरात राज्य और अन्य