वयस्क महिला को उसकी इच्छा के खिलाफ शेल्टर होम में रखना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2025-09-29 09:19 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी मजिस्ट्रेट को महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शेल्टर होम भेजने का अधिकार तो है लेकिन वयस्क महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध अनिश्चितकाल तक वहीं रखना असंवैधानिक है। कोर्ट ने कहा कि जब महिला स्वयं रिहाई की मांग करती है तो मजिस्ट्रेट को उसे तत्काल मुक्त करना अनिवार्य है।

मामले में शिकायतकर्ता ने बलात्कार का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कराई थी। महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने कहा कि उसके पास परिवार नहीं है और वह माता-पिता के घर नहीं जाना चाहती। इसी आधार पर 30 मार्च, 2025 को मजिस्ट्रेट ने उसे शेल्टर होम भेजने का आदेश दिया।

महिला ने बाद में रिहाई के लिए आवेदन किया लेकिन मजिस्ट्रेट ने उसे खारिज कर दिया। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि उसे अवैध रूप से रोका गया।

खंडपीठ ने आदेश में कहा,

“मजिस्ट्रेट को महिला की सुरक्षा के लिए शेल्टर होम भेजने का अधिकार है लेकिन यह आदेश अनिश्चितकाल के लिए नहीं हो सकता और न ही महिला की इच्छा के खिलाफ लागू किया जा सकता है। जब महिला खुद रिहाई की मांग करती है तो मजिस्ट्रेट उसे तुरंत मुक्त करे, खासकर जब वह वयस्क हो और शेल्टर होम में नहीं रहना चाहती हो।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट के कुछ टिप्पणियां अनुचित हैं, क्योंकि महिला को केवल इसलिए शेल्टर होम भेजा गया कि उसके पास जाने के लिए कोई अन्य जगह नहीं थी और उसने माता-पिता के घर जाने से मना किया।

कोर्ट ने कहा कि किसी नागरिक को उसकी इच्छा के खिलाफ शेल्टर होम में रखना स्वीकार्य नहीं है और मजिस्ट्रेट का आदेश महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

अंततः कोर्ट ने शेल्टर होम को निर्देश दिया कि महिला को तुरंत मुक्त किया जाए और उसे अपने सामान लेने की अनुमति भी दी जाए। याचिका मंजूर कर दी गई।

Tags:    

Similar News