भर्ती प्रक्रिया में पात्रता के लिए किसी संगठन के लिए काम करना, उसमें काम करने के समान नहीं माना जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-08-30 05:26 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी संगठन के लिए काम करना, किसी संगठन में काम करने के समान नहीं माना जा सकता और भर्ती नियमों की व्याख्या करते समय 'रोज़गार' और 'पैनल में शामिल' को अलग-अलग माना जाना चाहिए।

जस्टिस मनोज जैन ने भारतीय मानक ब्यूरो में सहायक निदेशक (विधि) की याचिका पर विचार करते हुए कहा,

"निस्संदेह, विज्ञापन में दिए गए मुख्य शब्द केंद्र/राज्य उपक्रम में संबंधित क्षेत्र में 'तीन वर्ष' का अनुभव हैं। मैं उपरोक्त मानदंडों में प्रयुक्त शब्द "में" पर ज़ोर देना चाहूंगा। कोई व्यक्ति न्यायालय के समक्ष किसी सरकारी निकाय का प्रतिनिधित्व कर सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह ऐसे संगठन या सरकारी निकाय में भी काम कर रहा है।"

याचिकाकर्ता लॉ ग्रेजुएट हैं। उनको भर्ती प्रक्रिया पूरी करने और कार्यकारी समिति द्वारा सत्यापन के बाद उपर्युक्त पद पर नियुक्त किया गया।

हालांकि, उनके कार्य-अनुभव के संदिग्ध होने के आधार पर उनकी परिवीक्षा अवधि के दौरान ही उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।

तथ्यों पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता कभी भी आईईसी यूनिवर्सिटी में कार्यरत नहीं थीं, बल्कि लगातार वकील के रूप में कार्य कर रही थीं। न्यायालय ने कहा कि विज्ञापन में "में" शब्द का प्रयोग भर्तीकर्ता बीआईएस के वास्तविक इरादे और उद्देश्य को दर्शाता है।

निस्संदेह, "संगठन के लिए कार्य करना" की तुलना "संगठन में कार्य करना" से नहीं की जा सकती। निस्संदेह, उपरोक्त चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि कार्य अनुभव किसी सरकारी एजेंसी में कार्य करने के संबंध में होना चाहिए था। यदि यह पद केवल अधिवक्ताओं के लिए खुला होता तो बीआईएस द्वारा विज्ञापन में ही इसका उल्लेख आसानी से किया जा सकता था। इसलिए केवल इसलिए कि कोई उम्मीदवार एक वकील है। इस हैसियत से वह किसी सरकारी एजेंसी का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है, इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह उम्मीदवार पात्रता मानदंडों को पूरा करता है।"

फिर भी चूंकि याचिकाकर्ता ने अपनी पात्रता और अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्रों के संबंध में कठोर चयन प्रक्रिया और सत्यापन से गुज़रा था, न्यायालय ने कहा,

“हालांकि, बीआईएस को उसके कार्य-अनुभव के बारे में संदेह और अनिश्चितता है। उनके ही ज्ञात कारणों से उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया और उसे नौकरी की पेशकश की... समिति ने गहन विचार-विमर्श के बाद, सोच-समझकर निर्णय लिया और उसे शॉर्टलिस्ट किए जाने के योग्य पाया। यदि समिति उसके कार्य-अनुभव प्रमाण-पत्र से संतुष्ट नहीं थी या उसका विचार था कि यह विज्ञापन में वर्णित पात्रता मानदंडों के अनुरूप नहीं है, तो उसे तुरंत ही उसे अयोग्य घोषित कर देना चाहिए था।”

बीआईएस के अनुसार, याचिकाकर्ता परिवीक्षा पर थी और उसकी बर्खास्तगी बिना किसी कलंक के हुई है।

इससे असहमत होते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

“किसी व्यक्ति को परिवीक्षा पर रखने का उद्देश्य परिवीक्षा पर रह रहे ऐसे व्यक्ति की क्षमता, योग्यता और उपयुक्तता का आकलन करना है... जब किसी परिवीक्षाधीन व्यक्ति की नियुक्ति समाप्त की जाती है तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश जाता है कि परिवीक्षाधीन व्यक्ति नौकरी के लिए अयोग्य है... इसलिए सामान्यतः ऐसी किसी भी बर्खास्तगी में कलंक अंतर्निहित होगा।”

इस प्रकार, न्यायालय ने यह माना कि भले ही परिवीक्षाधीन व्यक्ति के पास नौकरी जारी रखने का ऐसा कोई निहित अधिकार न हो, लेकिन बर्खास्तगी का तरीका सभी उद्देश्यों के लिए कलंक के आवरण से युक्त है।

इस प्रकार, न्यायालय ने यह माना कि याचिकाकर्ता की ओर से किसी भी गलत बयानी के अभाव में उसे अब बर्खास्त नहीं किया जा सकता।

Case title: XX v. Union of India

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