पोर्टल से न्यूज़ हटाने का मामला: अडानी एंटरप्राइजेज ने हाईकोर्ट में कहा- न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट्स हटाने के लिए कोई नया अनुरोध नहीं करेंगे
अडानी एंटरप्राइजेज ने गुरुवार (25 सितंबर) को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि वह डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा कंपनी से संबंधित मीडिया रिपोर्टों के संबंध में कोई नया अनुरोध नहीं करेगा।
जस्टिस सचिन दत्ता के समक्ष अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर एडवोकेट अनुराग अहलूवालिया ने यह दलील दी।
अदालत डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म न्यूज़लॉन्ड्री और पत्रकार रवीश कुमार की उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें केंद्र सरकार के उस निर्देश को चुनौती दी गई। इसमें डिजिटल न्यूज़ प्रकाशकों को अडानी ग्रुप की कंपनियों से संबंधित कई रिपोर्ट्स और वीडियो हटाने के लिए कहा गया था।
न्यूज़लॉन्ड्री की ओर से सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल और एडवोकेट बानी दीक्षित ने कहा,
"नौ प्रतिवादियों और एक जॉन डो के खिलाफ एकपक्षीय आदेश पारित किया गया। बिना किसी सूचना के हटाने का निर्देश दिया गया। कुछ लोगों के नाम लिए गए और उन्हें नोटिस दिया गया। उन्होंने अपील दायर की। इस पर रोक है।"
कृपाल ने कहा कि अपीलीय अदालत ने 18 सितंबर को कुछ पत्रकारों के मामले में स्थगन आदेश दिया था।
उन्होंने आगे कहा,
"यह स्थगन केवल उन पत्रकारों के लिए है, जिन्होंने अपील की थी। हम जॉन डो प्रतिवादी हैं...।"
इस बीच, रवीश कुमार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट त्रिदीप पैस ने कहा कि जॉन डो आदेश आमतौर पर किसी अवैध गतिविधि को और फैलने से रोकने के लिए दिया जाता है।
कृपाल ने कहा कि जब न्यूज़लॉन्ड्री ने अपीलीय अदालत का रुख किया तो अदालत ने नोटिस जारी किया।
उन्होंने आगे कहा,
"सरकार ने किन प्रावधानों के तहत हमें हटाने का निर्देश दिया है? उन्हें किसने सूचित किया... 16 सितंबर को उन्होंने (सरकार ने) कहा कि 36 घंटों में हटा दें। सरकार (मुकदमे में) पक्ष नहीं है। मध्यस्थ दिशानिर्देश हैं, जो मानहानिकारक लेखों पर रोक लगाते हैं। मैं मध्यस्थ नहीं हूं...।"
कृपाल ने तर्क दिया कि वर्तमान रिट याचिका में याचिकाकर्ता को 16 सितंबर के सरकारी आदेश के विरुद्ध राहत मिली है।
कृपाल ने आगे कहा,
"क्या सरकार यह मान रही है कि 'अन्य अपीलकर्ताओं के मामले में आदेश पर रोक लगने के बाद भी मुझे उसे हटाना होगा?' कुछ अपीलकर्ताओं के मामले में आदेश पर रोक लग गई, सरकार द्वारा हमें आदेश की सूचना दी गई..."
इस बीच केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने दलील दी कि आयकर नियमों में यह स्पष्ट है कि जब सरकार को अदालती आदेश प्राप्त होता है तो उसे सूचित करना होता है।
अदालत ने पूछा,
"तो क्या सरकार यहां डाकघर की तरह काम कर रही है? आप केवल दूसरे पक्ष को अदालती आदेश दे रहे हैं।"
सरकार के वकील ने कहा कि जब भी मंत्रालय को किसी पक्ष से अदालती आदेश के बारे में अनुरोध प्राप्त होता है तो सरकार संबंधित पक्ष को केवल यह सूचित करती है कि 'कृपया अदालती आदेश का पालन करें'।
उन्होंने आगे कहा,
"अपीलीय अदालत के आदेश की भी हमें सूचना दी गई। हमने तुरंत उन आदेशों को भी आगे भेज दिया। मेरा काम केवल सूचित करना है। बस इतना ही। अगर अपीलीय अदालत रोक लगा देती है तो बस इतना ही।"
हालांकि, कृपाल ने कहा कि सरकार ने आदेश पारित किया और न्यूज़लॉन्ड्री को इस आदेश से आपत्ति है। इस स्तर पर अदालत ने टिप्पणी की कि सरकार ने न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म से नवीनतम अदालती आदेश के आधार पर कार्रवाई करने को कहा है।
कृपाल ने हालांकि, कहा,
"मैं अपीलकर्ता नहीं हूं, जो अपीलकर्ता नहीं हैं, उनके लिए यह आदेश रद्द नहीं किया जा सकता। कोई भी ऐसे लोकतंत्र में नहीं रहना चाहता, जहां यह खतरा हो कि आदेश की यहां-वहां व्याख्या की जाएगी। यह आईटी दिशानिर्देशों का हिस्सा नहीं है। यह उस व्यक्ति के बारे में है, जो आदेश से उत्तेजित हो गया।"
मध्यस्थ की परिभाषा का ज़िक्र करते हुए कृपाल ने कहा,
"यह फ़ेसबुक जैसा है। फ़ेसबुक मेरी ओर से ऐसा करता है और फिर वह मध्यस्थ बन जाता है। मैं मध्यस्थ नहीं हूं। मैं मूल स्रोत हूं। मैंने इसे संग्रहीत किया। नियम 3(डी) मुझ पर लागू नहीं होता। अडानी यहां हैं। उन्हें सुनवाई की ज़रूरत नहीं है। उन्हें अभियोग लगाने दें। हम रोहिणी कोर्ट में उनके खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।"
इसके बाद अहलूवालिया ने दलील दी कि न्यूज़लॉन्ड्री की याचिका में मौजूद वही सामग्री ट्रायल कोर्ट में उनकी अपील में भी मौजूद है। हालांकि, कृपाल ने इस दलील का विरोध किया।
अदालत ने अहलूवालिया से पूछा,
"क्या आपने सरकार को आदेश से अवगत कराया?"
इसका उन्होंने हाँ में जवाब दिया। इसके बाद अदालत ने अडानी एंटरप्राइजेज को इस मामले में अभियोग लगाने का आवेदन दायर करने को कहा।
कृपाल ने रोक लगाने की मांग की तो अदालत ने पूछा कि क्या न्यूज़लॉन्ड्री ने आदेश का पालन किया, जिस पर कृपाल ने कहा,
"मैंने इसे हटाया नहीं है। मुझे अभी इसका पालन करना है।"
इस स्तर पर अहलूवालिया ने कहा,
"हम आगे कोई सामग्री हटाने के लिए नहीं कहेंगे। जो कुछ भी हटाने के लिए कहा गया, वह किया जा चुका है।"
इसके बाद कृपाल ने कहा कि वह भी निर्देश लेंगे और कहा कि एकपक्षीय गैग ऑर्डर में कहा गया कि कोई भी नई सामग्री अपलोड नहीं की जाएगी।
इसके बाद अदालत ने टिप्पणी की,
"यह सब अपीलीय अदालत के अधीन होगा।"
इस पर कृपाल ने कहा,
"इससे मेरी पत्रकारिता गतिविधि रुक जाएगी।"
पैस ने एकपक्षीय गैग ऑर्डर का हवाला दिया और कहा,
"शिकायत में बहुत सारी सामग्री का हवाला दिया गया। दस्तावेज़ दाखिल किए गए... यह आदेश वादी (अडानी एंटरप्राइजेज) को मध्यस्थ को सीधे सूचित करने का अधिकार देता है।"
इसके बाद पैस ने अदालत को बताया कि रवीश कुमार ने भी गैग ऑर्डर के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में अपील दायर की है। इस पर अहलूवालिया ने स्पष्ट किया कि उनके निर्देश केवल न्यूज़लॉन्ड्री के लिए है, क्योंकि कुमार द्वारा अपील दायर करने का तथ्य उनकी जानकारी में नहीं है।
इसके बाद दोनों पक्षकारों ने कहा कि वे इस मामले में निर्देश मांगेंगे।
इस मामले की सुनवाई कल (शुक्रवार) भी जारी रहेगी।
Case title: NEWSLAUNDRY MEDIA PVT LTD V/s UNION OF INDIA with RAVISH KUMAR V/s UNION OF INDIA