सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत फोरम संपत्ति के स्वामित्व के सवाल पर फैसला नहीं कर सकते: दिल्ली हाइकोर्ट

Update: 2024-05-29 08:49 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सीनियर सिटीजन एक्ट (Senior Citizens Act)के तहत फोरम संपत्ति के स्वामित्व के सवाल पर फैसला नहीं कर सकते।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा,

"अधिनियम को पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि अधिनियम के तहत फोरम को संपत्ति के स्वामित्व पर फैसला करने का अधिकार नहीं है और अधिनियम का उद्देश्य सीनियर सिटीजन का भरण-पोषण और उनका कल्याण सुनिश्चित करना है। इसलिए सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत फोरम द्वारा स्वामित्व के सवाल पर फैसला नहीं किया जा सकता।"

न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली बहू द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं है, जिसमें सास को संरक्षण देने वाले अंतरिम आदेश के खिलाफ उनकी अपील को खारिज कर दिया गया था।

बहू ने उस संपत्ति पर दावा किया, जो उसके मृत पति के पक्ष में वसीयत की गई थी। सीनियर सिटीजन सास ने बेटे द्वारा उनके पक्ष में निष्पादित सेल्स डीड के आधार पर संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा किया।

आक्षेपित आदेश के अनुसार जिला मजिस्ट्रेट ने बहू की अपील को इस आधार पर खारिज कर दिया कि सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत फोरम को नियम 22 के तहत आवेदन पर विचार करने का अधिकार नहीं है यदि उस संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर विवाद है, जिससे बेदखली की मांग की जा रही है।

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि मामले में मालिकाना हक का सवाल विवादित था लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सीनियर सिटीजन तब तक कानून के तहत फोरम से संपर्क नहीं कर सकते, जब तक कि यह अंतिम रूप से तय नहीं हो जाता कि संपत्ति में उनका और अधिकार है या नहीं।

अदालत ने कहा,

"अपील प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता के हितों की रक्षा की, क्योंकि उसने मजिस्ट्रेट को मामले में नए सिरे से आगे बढ़ने का निर्देश दिया। यह अदालत अपील प्राधिकरण द्वारा लिए गए निर्णय के अनुरूप है।"

केस टाइटल- मंजू टोकस और अन्य बनाम दिल्ली सरकार के माध्यम से संभागीय आयुक्त और अन्य।

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