DV Act के तहत साझा घर का अधिकार सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब किसी सीनियर सिटीजन के साथ घोर दुर्व्यवहार का सबूत होता है तो घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 (Domestic Violence Act (DV Act)) के तहत साझा घर में रहने का महिला का अधिकार सीनियर सिटीजन के शांतिपूर्वक रहने के अधिकार का अतिक्रमण नहीं करता।
न्यायालय ने कहा कि संबंधित प्राधिकारी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मौजूदा संरक्षण आदेश के बावजूद सीनियर सिटीजन की बहू के खिलाफ बेदखली आदेश जारी कर सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
जस्टिस संजीव नरूला की एकल पीठ जिला मजिस्ट्रेट द्वारा बेदखली को बरकरार रखने वाले संभागीय आयुक्त (अपीलीय प्राधिकरण) के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाकर्ताओं की याचिका पर विचार कर रही थी।
प्रतिवादी नंबर 3 सीनियर सिटीजन और विधवा है। वह और उसका पति (प्रतिवादी नंबर 2) अपने बेटे (याचिकाकर्ता नंबर 2) और बहू (याचिकाकर्ता नंबर 1) के साथ एक ही घर में रहते हैं। हालांकि याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों के बीच कलह और दैनिक तनाव पैदा हो गया।
एक मजिस्ट्रेट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (DV Act) के तहत अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता नंबर 1 को साझा घर से बेदखल करने से रोक दिया गया।
इस बीच प्रतिवादियों द्वारा याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दायर बेदखली याचिका जिला मजिस्ट्रेट ने अनुमति दी। अपील में संभागीय आयुक्त ने बेदखली आदेश बरकरार रखा।
बेदखली आदेश पारित करने का अधिकार क्षेत्र
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि बेदखली आदेश अवैध है, क्योंकि यह घरेलू हिंसा आदेश की अवहेलना करता है और उसके साथ विरोधाभासी है।
यह तर्क दिया गया कि मौजूदा घरेलू हिंसा आदेश के मद्देनजर अधिकारियों के पास सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत बेदखली आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट और घरेलू हिंसा अधिनियम की व्याख्या सामंजस्यपूर्ण ढंग से की जानी चाहिए। बहू के साझा घर में रहने के अधिकार और सीनियर सिटीजन के शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार के बीच संतुलन बनाते हुए।
इसने देखा कि सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत अपीलीय प्राधिकारी का अधिकार क्षेत्र DV Act के तहत सुरक्षा आदेश से प्रभावित नहीं होता है।
न्यायालय ने कहा कि DV Act की धारा 17 के तहत साझा घर में रहने का अधिकार पूर्ण नहीं है। खासकर तब जब ऐसा अधिकार सीनियर सिटीजन के अधिकारों के साथ विरोधाभासी हो।
उन्होंने नोट किया कि चूंकि याचिकाकर्ताओं के आचरण ने सीनियर सिटीजन के लिए शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाया और उसके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया। इसलिए DV Act के तहत अधिकार सीनियर सिटीजन के सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत राहत मांगने के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकता।
उन्होंने माना कि संभागीय आयुक्त के पास याचिकाकर्ताओं को बेदखल करने का अधिकार है।
“यह तथ्य कि प्रतिवादी नंबर 3 सीनियर सिटीजन है, जो अब बिना किसी सहारे के विधवा हो गई है। इस न्यायालय के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए उचित विचार है कि उसकी सुरक्षा और शांति के अधिकार बरकरार रहें। जबकि DV Act के तहत याचिकाकर्ता का अधिकार स्वीकार किया जाता है, यह सीनियर सिटीजन के सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत राहत मांगने के अधिकार को प्रभावित नहीं करता, जब घोर दुर्व्यवहार का सबूत हो। इस प्रकार, सीनियर सिटीजन के तहत अधिकारियों पर बेदखली के अनुरोध पर विचार करने के लिए कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।”
रहने की व्यवस्था तय करने के लिए सीनियर सिटीजन की स्वायत्तता का अधिकार
न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता पर ध्यान दिया।
इसने नोट किया कि प्रतिवादी संख्या 2 और 3 ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने घरेलू संपत्तियों का दुरुपयोग किया, जिसमें मूल्यवान पेंटिंग और आभूषणों को हटाना भी शामिल है।
इसने कहा कि ये कृत्य 'आर्थिक शोषण' के संकेत हैं, जो सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार का मान्यता प्राप्त रूप है।
यह भी उल्लेख किया कि प्रतिवादियों ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने उन्हें छह से अधिक कमरों वाली संपत्ति में एक कमरे तक सीमित कर दिया था।
इसने देखा कि यह मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न के बराबर है। यह सीनियर सिटीजन के बिना अनुचित हस्तक्षेप या नियंत्रण के अपनी संपत्ति में रहने के अधिकार का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अधिकारियों को उनके और प्रतिवादियों के बीच सह-अस्तित्व व्यवस्था का पता लगाना चाहिए था।
न्यायालय ने कहा कि सह-अस्तित्व व्यवस्था के लिए इस तरह का दावा सीनियर सिटीजन के यह तय करने के अधिकार की अनदेखी करता है कि वह कैसे रहना चाहती है।
उन्होंने टिप्पणी की कि आरोपों की गंभीरता और पक्षों के बीच संबंधों के स्पष्ट टूटने के संबंध में बेदखली सबसे उपयुक्त उपाय था।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि प्रतिवादी नंबर 3 देखभाल के लिए उन पर निर्भर है, क्योंकि वह अस्वस्थ है।
“सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत किसी के रहने की व्यवस्था विशेष रूप से उनके बुढ़ापे में तय करने में स्वायत्तता के अधिकार को मान्यता दी गई है। केवल यह तथ्य कि प्रतिवादी संख्या 3 शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो सकती है। उम्हें उन लोगों की उपस्थिति को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं करती है, जिन्होंने उसकी धारणा में उसके संकट में योगदान दिया है। यह न्यायालय सीनियर सिटीजन पर उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरन रहने की व्यवस्था नहीं थोप सकता, विशेष रूप से जब यह उसके दुख का स्रोत पाया गया हो।”
याचिकाकर्ता नंबर 1 ने यह भी दावा किया कि उसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। उसे गंभीर वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने तर्क दिया कि उसे बेदखल करने से वह बिना आश्रय के रह जाएगी। इस प्रकार उसके निवास के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
न्यायालय ने देखा कि सीनियर सिटीजन एक्ट वयस्क बच्चों और उनके जीवनसाथी को केवल उनकी वित्तीय या स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर स्वचालित सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। इसने कहा कि शांतिपूर्ण और सुरक्षित रहने के माहौल के लिए सीनियर सिटीजन के अधिकार को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
उन्होंने नोट किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा कथित वित्तीय कठिनाइयाँ अधिनियम के तहत सुरक्षा को खत्म करने का कानूनी आधार नहीं हो सकती।
न्यायालय ने माना कि चूंकि याचिकाकर्ताओं की कार्रवाई सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत प्रतिवादी संख्या 3 के खिलाफ दुर्व्यवहार के बराबर थी। इसलिए बेदखली आदेश आवश्यक और उचित प्रतिक्रिया थी।
इस प्रकार इसने संभागीय आयुक्त का आदेश बरकरार रखा।
उन्होंने याचिकाकर्ता नंबर 2 को अपनी पत्नी/याचिकाकर्ता नंबर 1 को DV Act के तहत उसके आवासीय अधिकार की रक्षा के लिए प्रति माह 75000 रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।
केस टाइटल: पूजा मेहता और अन्य बनाम दिल्ली सरकार और अन्य