तलाक के बाद घरेलू हिंसा कानून के तहत महिला को निवास का अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-08-22 10:40 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि विवाह कानूनी रूप से समाप्त हो चुका है तो महिला को घरेलू हिंसा कानून (Protection of Women from Domestic Violence Act) की धारा 17 के तहत साझा घर में रहने का अधिकार नहीं होगा, जब तक कि उसके पास कोई अन्य वैधानिक अधिकार साबित न हो।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा,

“जब विवाह वैध तलाक डिक्री द्वारा समाप्त हो जाता है तो घरेलू संबंध भी समाप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, जिस आधार पर निवास का अधिकार टिका है, वह समाप्त हो जाता है, जब तक कि कोई विपरीत वैधानिक अधिकार साबित न किया जाए।”

मामले में एक बहू ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की थी, जिसमें उसकी सास के पक्ष में कब्ज़ा, उपयोग और स्थायी निषेधाज्ञा का डिक्री पारित किया गया। सास का 2016 में निधन हो गया और उसने अपनी संपत्ति बेटी के नाम वसीयत कर दी।

बहू ने दावा किया कि वह 1999 में शादी के बाद से उक्त संपत्ति में रह रही है। यह उसका वैवाहिक घर है। उसका कहना है कि संपत्ति पहले उसके पति के नाम पर थी, जिसे बाद में मजबूरी में उसकी मां के नाम कर दिया गया। उसने संपत्ति की खरीद और निर्माण में आर्थिक योगदान देने का भी दावा किया।

वहीं फैमिली कोर्ट ने नवंबर, 2019 की तलाक डिक्री के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि अब उसके पास उक्त घर में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए कहा,

“तलाक की डिक्री को चुनौती देने के बावजूद वर्तमान में कोई वैवाहिक संबंध या घरेलू संबंध अस्तित्व में नहीं है। ऐसे में घरेलू हिंसा कानून की धारा 17 का सहारा लेने का आधार ही नहीं बचता।”

अदालत ने यह भी कहा कि बहू द्वारा दिए गए आर्थिक योगदान से उसे संपत्ति पर कोई स्वामित्व अधिकार नहीं मिल जाता। साथ ही उसे छह महीने का समय घर खाली करने के लिए दिया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कार्रवाई न तो मनमानी थी और न ही अनुचित।

अदालत ने कहा,

“तथ्यों और लागू कानूनी सिद्धांतों के आलोक में फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है। निष्कर्ष तार्किक और साक्ष्यों के उचित मूल्यांकन पर आधारित हैं।”

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