रेलवे को शिकायत निवारण तंत्र को त्वरित, प्रभावी बनाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-08-07 11:10 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि रेलवे को सार्वजनिक परिवहन के सुचारू और उचित संचालन के लिए शिकायत निवारण तंत्र को त्वरित, प्रभावी और संरचित बनाना चाहिए।

जस्टिस पुरीशेंद्र कुमार कौरव ने कहा,

“महत्वपूर्ण सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में जो हमारे देश में आम आदमी की आजीविका को प्रभावित करने के लिए अपनी रसद क्षमता से परे है, रेलवे के लिए आम जनता की चिंताओं पर त्वरित प्रतिक्रिया दिखाना नैतिक रूप से अनिवार्य है। बहुआयामी संस्थान के रूप में रेलवे की सर्वव्यापकता सार्वजनिक सुरक्षा और अपनी सेवाओं के निर्बाध संचालन को सुदृढ़ करने की अंतर्निहित जिम्मेदारी रखती है।”

अदालत ने कहा कि सार्वजनिक सेवाओं की त्वरित और वैध डिलीवरी सुनिश्चित करने की आवश्यकता केवल सुशासन का मानदंड नहीं है, बल्कि इसने हाल के दिनों में एक वैधानिक बल प्राप्त कर लिया है।

अदालत ने कहा,

"न केवल प्रतिवादियों (रेलवे) का दायित्व है कि वह सुनिश्चित करे कि उसका रेलवे बुनियादी ढांचा सामाजिक रूप से समावेशी हो और सभी पृष्ठभूमि के लोगों के लिए अनुकूल हो- हालांकि यह दायित्व इस मामले में पूरा करने में विफल रहा है- बल्कि उसे त्वरित, प्रभावी और संरचित शिकायत समाधान तंत्र सुनिश्चित करना चाहिए, जो सार्वजनिक परिवहन के ऐसे साधनों के सुचारू और उचित संचालन को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित करे।"

जस्टिस कौरव रजिया सुल्तान नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसमें 2017 में हुई घटना के लिए रेलवे के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई, जिसमें वह अपने पति और नाबालिग बच्चे के साथ ट्रेन छूटने वाली थी, क्योंकि ट्रेन के डिब्बों की स्थिति दिखाने वाला डिस्प्ले बोर्ड काम नहीं कर रहा था।

उसका मामला यह है कि ट्रेन बहुत कम समय के लिए रुकने वाली थी और यात्रियों द्वारा चेन खींचने के बाद वह अपने पति के साथ ट्रेन में चढ़ सकी।

उसने तर्क दिया कि उसने भारतीय रेलवे के वेब पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई, लेकिन अधिकारियों द्वारा उसका संतोषजनक ढंग से निपटारा नहीं किया गया।

याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने कहा कि शिकायत वास्तविक और उचित थी तथा रेलवे जो राज्य की परिभाषा में आता है, कोच डिस्प्ले इंडिकेटर्स के समुचित संचालन को सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है तथा किसी भी चूक के मामले में उसे महिला की शिकायत का उचित तरीके से निवारण करना चाहिए।

न्यायालय ने कहा,

"निपटान पत्र में न तो यह सुझाव दिया गया कि प्रतिवादियों द्वारा संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी का पता लगाने के लिए कोई प्रयास किया गया, न ही इसमें ऐसा कोई उपाय बताया गया, जिससे भविष्य में ऐसी घातक स्थितियों से बचने में मदद मिल सके।"

न्यायालय ने आगे कहा कि यदि इस तरह के मुद्दों का बेतरतीब ढंग से निवारण किया जाता है, जैसा कि मामले में किया गया तो यह बड़ी परिचालन चुनौतियों में बदल सकता है तथा रेलवे जनता का विश्वास जीतने में विफल हो सकता है।

जस्टिस कौरव ने संबंधित रेलवे डिवीजन के सीनियर अधिकारी को महिला द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने रेलवे को चार महीने के भीतर इस मुद्दे पर गहन विचार करने के बाद आदेश पारित करने का भी निर्देश दिया।

केस टाइटल- रजिया सुल्तान बनाम भारत संघ एवं अन्य।

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