गैर-कानूनी क्रिकेट बेटिंग से मिली प्रॉपर्टी 'क्राइम से हुई कमाई', ED इसे अटैच कर सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि हालांकि क्रिकेट बेटिंग प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के तहत कोई अलग अपराध नहीं है, लेकिन ऐसी गैर-कानूनी गतिविधियों से हुई प्रॉपर्टी को एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) अटैच कर सकता है।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने कहा कि PMLA की धारा 2(1)(u), जो क्राइम से हुई कमाई को बताता है, का दायरा बहुत बड़ा है।
खंडपीठ ने कहा,
"भले ही कोई डाउनस्ट्रीम एक्टिविटी, जैसे बेटिंग करना, कोई शेड्यूल्ड अपराध न हो, ऐसी एक्टिविटी से हुआ प्रॉफिट असली दागी प्रॉपर्टी से जुड़ा रहता है, खासकर जब वह डाउनस्ट्रीम एक्टिविटी क्राइम की एक चेन का आखिरी रूप हो, जो पहले के कई क्रिमिनल कामों से गहराई से जुड़ी हो, तो उससे मिला कोई भी प्रॉफिट PMLA के दायरे में साफ तौर पर "क्राइम से हुई कमाई" है"।
इस मामले में यह आरोप है कि याचिकाकर्ता ने सुपर मास्टर IDs खरीदने और बांटने में एक्टिव रोल निभाया, जो इंटरनेशनल क्रिकेट बेटिंग रैकेट को जारी रखने के लिए एक ज़रूरी ज़रूरत थी।
ऐसी एक्टिविटीज़ से मिले ₹2,400 करोड़ में से ₹20 करोड़ कथित तौर पर उसे ट्रांसफर किए गए।
इसलिए ED ने बेटिंग एक्टिविटीज़ से जुड़े गैर-कानूनी कामों से हुए क्राइम की कमाई के तौर पर उसकी ₹20 करोड़ की चल और अचल प्रॉपर्टीज़ को प्रोविजनल तौर पर अटैच कर लिया।
याचिकाकर्ता ने कहा कि क्रिकेट बेटिंग कोई शेड्यूल्ड ऑफेंस नहीं है, इसलिए यह प्रिडिकेट ऑफेंस के दायरे में नहीं आता है, इसलिए क्राइम की कोई कमाई नहीं बताई जा सकती।
इससे सहमत न होते हुए हाईकोर्ट ने कहा,
“याचिकाकर्ता का बिना किसी KYC वेरिफिकेशन या कानूनी डॉक्यूमेंटेशन के ये IDs खरीदना और बांटना जालसाजी, धोखाधड़ी, पहचान से जुड़ी धोखाधड़ी और क्रिमिनल साज़िश है, जो सभी एक तय अपराध है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता का काम सिर्फ़ अचानक नहीं था; बल्कि, यह एक बड़ी आपराधिक साज़िश को आगे बढ़ाने के लिए जानबूझकर किया गया काम था, जिसका मकसद गैर-कानूनी बेटिंग रैकेट चलाना था। इसलिए सुपर मास्टर लॉग-इन IDs के इस्तेमाल से कोई भी अप्रत्यक्ष फ़ायदा, अपराध की कमाई मानी जाएगी।”
कोर्ट ने बताया कि अगर कोई व्यक्ति जालसाजी, धोखाधड़ी और आपराधिक साज़िश के ज़रिए कोई अचल संपत्ति हासिल करता है। उसके बाद उस संपत्ति का इस्तेमाल किसी दूसरी एक्टिविटी के लिए करता है, जैसे कि बिना लाइसेंस वाला रियल-एस्टेट बिज़नेस करना, जो तय अपराध नहीं है, तो भी उस बाद की एक्टिविटी से हुई कमाई PMLA की धारा 2(1)(u) के तहत “अपराध की कमाई” मानी जाएगी।
कोर्ट ने आख़िर में कहा,
“ऐसा इसलिए है, क्योंकि प्रॉपर्टी पर शुरू से ही जो दाग लगा था, वह एक तय अपराध से जुड़ी क्रिमिनल एक्टिविटी की वजह से था। बाद में भी इस्तेमाल के दौरान बना रहता है। सीधे शब्दों में कहें तो, “ज़हरीले पेड़ का फल”।”
इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।
Case title: Naresh Bansal & Ors. v. Adjudicating Authority And Anr (and batch)