मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण को मुआवजा निर्धारित करने के लिए मृतक की आय का आकलन करने से पहले कर, अन्य कटौतियों को समायोजित करना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-06-19 06:11 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण को मृतक के परिजनों को देय मुआवजे का निर्धारण करने के लिए, मृतक की आय से आयकर और अन्य वैधानिक दायित्वों में कटौती करनी चाहिए।

जस्टिस अमित महाजन ने सरला वर्मा एवं अन्य बनाम दिल्ली परिवहन निगम एवं अन्य (2009) पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मुआवजे की गणना के लिए, पीड़ित की आय में से आयकर घटाकर वास्तविक आय मानी जानी चाहिए।

इसी तरह विमल कंवर एवं अन्य बनाम किशोर डेन एवं अन्य (2013) में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि यदि वार्षिक आय कर योग्य सीमा के अंतर्गत आती है, तो वास्तविक वेतन के निर्धारण के लिए आयकर की कटौती की जानी आवश्यक है।

इस मामले में, मृतक की आय 34,300/- प्रति माह (सकल वार्षिक आय 4,11,600/-) थी, जो एक ट्रक की चपेट में आने से मर गया। MACT ने मुआवजे का आकलन 49,82,740/- किया। मुआवजे की मात्रा से व्यथित होकर, बीमा कंपनी ने यह अपील दायर की।

कंपनी ने तर्क दिया कि मृतक, प्रासंगिक समय पर, कर स्लैब के अंतर्गत आता था जिसके लिए 5% आयकर देय था और मृतक की आय का आकलन करते समय विद्वान न्यायाधिकरण द्वारा इसे काट लिया जाना चाहिए था।

हाईकोर्ट ने सहमति व्यक्त की कि चूंकि सकल वार्षिक आय प्रासंगिक समय पर लागू कर के अधीन होगी, इसलिए न्यायाधिकरण को आय का आकलन करने के उद्देश्य से लागू कर और उसकी कटौती पर विचार करना चाहिए था।

हालांकि, उसी क्रम में न्यायालय ने नोट किया कि मृतक सकल वार्षिक आय से 50,000/- की मानक कटौती के लाभ के साथ-साथ मकान किराया भत्ते के मद में कटौती का लाभ पाने का हकदार था।

ऐसे लाभों को ध्यान में रखने के बाद, न्यायालय ने नोट किया कि मृतक की शुद्ध आय लगभग 2,50,000/- होगी और वह किसी भी आयकर के भुगतान के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

इस प्रकार, कोर्ट ने अवार्ड की मात्रा में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

Tags:    

Similar News