उच्च शिक्षित और नौकरीपेशा होने के बावजूद पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल इस आधार पर कि पत्नी उच्च शिक्षित है और नौकरी कर रही है, उसे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत भरण-पोषण (Maintenance) से वंचित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेनू भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि इस प्रावधान का उद्देश्य पति-पत्नी के जीवन स्तर में समानता सुनिश्चित करना है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी दूसरे के आर्थिक लाभ से प्रभावित न हो।
इसी सिद्धांत को मानते हुए कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक (Assistant Professor) के रूप में काम कर रही पत्नी, जिसकी मासिक आय एक लाख रुपये से अधिक है, को भी भरण-पोषण दिया। कोर्ट ने माना कि पत्नी और पति की आय व जीवनशैली में “स्पष्ट असमानता” है। पति की वार्षिक आय (ITR के अनुसार) 1.5 करोड़ रुपये से अधिक है।
फैमिली कोर्ट ने पहले पत्नी का भरण-पोषण खारिज कर केवल बेटी (जो पत्नी की अभिरक्षा में रहती है) के लिए ₹35,000 प्रतिमाह का आदेश दिया था।
पत्नी की अपील पर हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने गलती से पत्नी की आय को पर्याप्त मान लिया, जबकि पति-पत्नी की आर्थिक स्थिति और जीवन स्तर के अंतर को नज़रअंदाज़ कर दिया। अदालत ने कहा,
“पत्नी की आर्थिक आत्मनिर्भरता का आकलन पूर्ण रूप से नहीं, बल्कि विवाह के दौरान बनाए गए जीवन स्तर के सापेक्ष किया जाना चाहिए। धारा 24 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वैवाहिक संबंध टूटने से किसी भी जीवनसाथी को आर्थिक कठिनाई या सामाजिक नुकसान न हो।”
पति ने तर्क दिया कि धारा 24 का उद्देश्य “आलसी लोगों की फौज खड़ी करना” नहीं है और न ही यह कि कोई जीवनसाथी दूसरे की कमाई पर ऐश करे।
लेकिन हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया,
“धारा 24 के तहत दावे का परीक्षण केवल इस आधार पर नहीं होता कि पत्नी नौकरी कर रही है या कमा सकती है, बल्कि इस आधार पर होता है कि क्या उसकी आय उसी जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त है, जैसा वह पति के साथ रहते समय था।”
अदालत ने कहा,
“दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति में भारी अंतर है। पति की कमाई पत्नी से लगभग दस गुना अधिक है। अंतरिम भरण-पोषण का उद्देश्य निष्पक्ष संतुलन कायम करना और जीवन स्तर में समानता सुनिश्चित करना है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी और बच्चा, दूसरे की आर्थिक बढ़त से नुकसान न उठाए। कानून भी साफ है कि केवल शिक्षित होने, कमा सकने की क्षमता रखने या नौकरी करने के कारण भरण-पोषण का दावा खारिज नहीं किया जा सकता।”
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने भरण-पोषण की राशि ₹35,000 से बढ़ाकर ₹1,50,000 प्रतिमाह (पत्नी और बच्ची दोनों के लिए संयुक्त रूप से) कर दी।