Maintenance Case | जहां प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध न हो वहां पक्षकारों की आय का न्यायिक आकलन आवश्यक: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-11-03 08:30 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों में भरण-पोषण प्रदान करने के उद्देश्य से जहां पक्षकारों की आय का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध न हो, वहां न्यायिक आकलन आवश्यक है।

जस्टिस संजीव नरूला ने कहा,

"जहां आय का पूर्ण विवरण नहीं दिया गया या दस्तावेज़ी प्रमाण अपूर्ण हैं, वहां कोर्ट से विशुद्ध रूप से अंकगणितीय पद्धति अपनाने की अपेक्षा नहीं की जाती है, बल्कि वे पक्षकारों के समग्र जीवन स्तर, जीवनशैली और आसपास की परिस्थितियों के आधार पर उचित अनुमान लगा सकते हैं। अंतर्निहित तर्क यह है कि जहां आय का प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं है, वहां न्यायिक आकलन आवश्यक हो जाता है।"

कोर्ट एक पति की याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनी पत्नी और उसके दो नाबालिग बच्चों को 12,000 रुपये का मासिक अंतरिम भरण-पोषण देने के आदेश को चुनौती दी गई।

उसका तर्क था कि ट्रायल कोर्ट ने उसके द्वारा दायर आय हलफनामे पर उचित विचार नहीं किया और उसकी वित्तीय क्षमता का सही आकलन नहीं किया।

यह तर्क दिया गया कि ट्रायल कोर्ट ने इस बात पर विचार नहीं किया कि पत्नी योग्य है, कमाने में सक्षम थी और उसे परिवार के भरण-पोषण में योगदान देना चाहिए, न कि केवल भरण-पोषण के अनुदान पर निर्भर रहना चाहिए।

दूसरी ओर, पत्नी ने तर्क दिया कि वह बच्चों की एकमात्र देखभालकर्ता थी और पति ने उनके पालन-पोषण में कोई योगदान नहीं दिया।

उसने दलील दी कि वह भरण-पोषण के लिए आर्थिक रूप से अपने पिता और परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर थी। तीन व्यक्तियों के लिए 12,000 रुपये प्रति माह की भरण-पोषण राशि उसकी और बच्चों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मुश्किल से ही पर्याप्त थी।

जस्टिस नरूला ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पक्षों द्वारा दायर आय संबंधी हलफनामों को ध्यान में रखते हुए और उचित सत्यापन के बाद अंतरिम भरण-पोषण का निर्धारण करते समय एक तर्कसंगत और संतुलित दृष्टिकोण अपनाया।

अदालत ने कहा कि सत्यापन के आधार पर ही ट्रायल कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पति ने अपने भरण-पोषण के दायित्वों से बचने के प्रयास में तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास किया।

जज ने कहा कि अंतरिम भरण-पोषण का आदेश कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान बुनियादी भरण-पोषण की सुरक्षा के लिए बनाया गया अस्थायी उपाय है, जो न तो पक्षकारों के अंतिम अधिकारों का निर्धारण करता है और न ही अंतिम चरण में पूर्ण साक्ष्य के आधार पर नए सिरे से मूल्यांकन को रोकता है।

कोर्ट ने कहा,

“तदनुसार, रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री और पक्षकारों की वित्तीय स्थिति के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी नंबर 2 और उसके दो नाबालिग बच्चों को 4,000/- रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश सही ठहराया। वास्तव में इस न्यायालय की सुविचारित राय में तीन व्यक्तियों के लिए दी गई कुल ₹12,000/- की राशि न्यूनतम है और बुनियादी भरण-पोषण सुनिश्चित करने के लिए मुश्किल से पर्याप्त है।”

Title: X v. Y

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