चाकू अपने आकार के बावजूद एक 'घातक हथियार', S.397 IPC के तहत अपराध दर्ज करने के लिए उसकी बरामदगी ज़रूरी नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाने की धमकी देने के लिए इस्तेमाल किए गए चाकू का आकार या प्रकार, भारतीय दंड संहिता की धारा 397 के तहत अपराध के लिए अप्रासंगिक है।
इस प्रावधान में कहा गया है कि यदि डकैती या लूटपाट करते समय अपराधी किसी घातक हथियार का इस्तेमाल करता है, या किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाता है, या किसी व्यक्ति की मृत्यु या गंभीर चोट पहुँचाने का प्रयास करता है, तो ऐसे अपराधी को कम से कम सात वर्ष की कैद की सज़ा दी जाएगी।
इस प्रकार, इस धारा के तहत अपराधी को डकैती करते समय किसी घातक हथियार का इस्तेमाल करना होगा।
यहां न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या चाकू की बरामदगी न होना अभियोजन पक्ष के लिए घातक होगा, क्योंकि बरामदगी के बिना यह पता लगाना संभव नहीं था कि चाकू खतरनाक था या नहीं।
इस पृष्ठभूमि में, जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने सोनू बनाम राज्य (2019) का उदाहरण दिया, जहां यह माना गया था कि चाकू अपने आकार-प्रकार से परे एक घातक हथियार है और चाकू को घातक हथियार मानने से पहले उसे किसी विशेष प्रकार या आकार के अनुसार वर्गीकृत करना उचित नहीं है।
इसके बाद पीठ ने इस विषय पर न्यायिक इतिहास का अध्ययन किया और पाया कि इस विषय पर दो विचारधाराएं हैं। एक निर्णय में इस प्रश्न पर विचार किया गया है कि क्या चाकू एक घातक हथियार है, जो उसके आकार, डिज़ाइन या उपयोग के तरीके को ध्यान में रखता है।
बालक राम बनाम राज्य (1981) में हाईकोर्ट की एक समन्वय पीठ ने कहा था कि चाकू अपने आप में घातक हथियार नहीं हैं और चाकू को घातक बनाने वाला उसका डिज़ाइन या उसके उपयोग का तरीका है।
सैमुददीन @ छोटू बनाम राज्य (2011) में एक अन्य समन्वय पीठ ने कहा था कि चाकू की बरामदगी न होने पर यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 397 के दायरे से बाहर हो जाएगा।
हालांकि, जस्टिस ओहरी ने कहा कि ये फैसले फूल कुमार बनाम दिल्ली प्रशासन (1975) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ध्यान में नहीं रखते, जिसमें कहा गया था कि चाकू एक घातक हथियार है।
इसके बाद, सलीम बनाम राज्य (1988) मामले में एक समन्वय पीठ ने भी यह माना था कि चाकू कई प्रकार के हो सकते हैं और केवल एक विशेष प्रकार या आकार के चाकू को घातक हथियार मानना उचित नहीं है।
इसी प्रकार, अशफाक बनाम राज्य (2004) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 397 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा, भले ही चाकू बरामद नहीं हुए थे।
इस मामले में, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि एक बाइक सवार ने उसका मोबाइल और कुछ नकदी लूटने के लिए उस पर चाकू तान दिया।
अपनी दोषसिद्धि के बाद, बाइक सवार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि कथित चाकू की बरामदगी न होने की स्थिति में, अभियोजन पक्ष यह साबित करने के लिए बाध्य है कि अपराध में इस्तेमाल किया गया हथियार एक खतरनाक हथियार था।
इस संबंध में उन्होंने जिरह के कुछ अंशों का हवाला दिया जहाँ शिकायतकर्ता ने कहा था कि वह निश्चित रूप से यह नहीं बता सकता कि धारदार हथियार चाकू था या नहीं।
हालांकि, हाईकोर्ट ने दूसरी विचारधारा का अनुसरण करते हुए कहा,
“वर्तमान मामले में, हालाकि हथियार की कोई बरामदगी नहीं हुई है, जो कि अप्रासंगिक है... शिकायतकर्ता की गवाही इस बात पर एकमत है कि अपीलकर्ता, जो बाइक चला रहा था, अपनी जेब से धारदार हथियार यानी चाकू निकालकर तान रहा था।”
अदालत ने आगे कहा कि धारदार हथियार का इस्तेमाल शिकायतकर्ता को वास्तव में चोट पहुंचाने के लिए नहीं किया गया था, लेकिन उसने कहा कि यह कभी भी भारतीय दंड संहिता की धारा 397 के तहत अपराध स्थापित करने की पूर्व शर्त नहीं रही है।
“पीड़ित के मन में भय या आशंका पैदा करने के लिए उसे केवल दिखाना, लहराना या यहां तक कि खुलेआम पकड़ना भी भारतीय दंड संहिता की धारा 397 के तहत दोषसिद्धि सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त है,” अदालत ने कहा और दोषसिद्धि को बरकरार रखा।