NCLT बैंकों, वित्तीय संस्थानों की अप्रिय प्रथाओं पर विचार करने के लिए बेहतर स्थिति में: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-09-13 07:42 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (NCLT) बैंकों की अप्रिय प्रथाओं से संबंधित मुद्दों पर विचार करने के लिए उपयुक्त प्राधिकरण है, जो चक्रवृद्धि या दंडात्मक ब्याज की गणना इस तरह से करते हैं, जिससे ऐसी स्थिति पैदा होती है जहां दिवाला और दिवालियापन संहिता की धारा 12ए (कॉर्पोरेट दिवाला समाधान को वापस लेने के लिए) के तहत समाधान की मांग करना मुश्किल हो जाता है।

न्यायालय ने टिप्पणी की,

"ऐसे मामलों में जहां बैंक चक्रवृद्धि ब्याज और/या दंडात्मक ब्याज पर ब्याज की गणना करते रहते हैं, एनपीए राशि ऐसी हो जाती है कि कई बार आईबीसी की धारा 12ए के तहत समाधान की मांग करना मुश्किल हो जाता है। हालांकि, इस न्यायालय का मानना ​​है कि NCLT वित्तीय संस्थानों की ओर से इस तरह की अप्रिय प्रथाओं से अनभिज्ञ नहीं है। NCLT यहां उठाए गए मुद्दों के पूरे दायरे पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए बेहतर स्थिति में होगा।”

जस्टिस धर्मेश शर्मा 12 जुलाई 2024 को न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश के विस्तार के लिए याचिकाकर्ता (बरेली हाईवे प्रोजेक्ट लिमिटेड) की याचिका पर विचार कर रहे थे। इस अंतरिम आदेश के माध्यम से याचिकाकर्ता-कंपनी को एसबीआई (प्रतिवादी नंबर 2) के साथ वन-टाइम सेटलमेंट प्रस्ताव (OTS) प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी गई, जिस पर उसके बाद सेटलमेंट एडवाइजरी कमेटी द्वारा विचार किया जाएगा।

याचिकाकर्ता-कंपनी ने तर्क दिया कि 20 जुलाई 2024 को OTS जमा करने के बाद SBI अधिकारियों ने 3 अगस्त को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से यांत्रिक और जल्दबाजी में बैठक बुलाई।

उन्होंने तर्क दिया कि बैठक में उपस्थित अधिकारियों का कोई परिचय नहीं दिया गया। उसी दिन उसके ओआरएस को खारिज करके अचानक निर्णय लिया गया, जिसकी जानकारी 6 सितंबर को एक पत्र के माध्यम से दी गई थी।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एसबीआई ने निष्पक्ष और पेशेवर तरीके से कार्यवाही नहीं की।

दूसरी ओर, SBI ने कहा कि बैठक में मुद्दों पर चर्चा करने के बाद OTS खारिज कर दिया गया। SBI ने कहा कि खारिज करने के कारणों का खुलासा 3 सितंबर की बैठक के मिनट्स में किया गया। हालांकि याचिकाकर्ता-कंपनी ने कहा कि बैठक के मिनट्स की प्रति उसके साथ साझा नहीं की गई। न्यायालय ने याचिकाकर्ता की इस दलील पर ध्यान दिया कि निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया जाना चाहिए। हालांकि इसने टिप्पणी की कि चूंकि मामला NCLT के समक्ष लंबित है, इसलिए याचिकाकर्ता की शिकायतों को दूर करने के लिए यह उपयुक्त मंच होगा।

"याचिकाकर्ता के सीनियर एडवोकेट द्वारा उठाई गई दलीलों को इस संदर्भ में स्वीकार किया जाना चाहिए कि कोई भी निर्णय जल्दबाजी में और स्पष्ट रूप से गैर-पेशेवर तरीके से नहीं लिया जाना चाहिए। मामला NCLT 5 के समक्ष लंबित है, इसलिए उक्त फोरम उपयुक्त होगा, जहां ऐसी शिकायतों को व्यक्त किया जा सके और उनका निवारण किया जा सके।"

इस प्रकार न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश आगे नहीं बढ़ाया और याचिका खारिज की गई।

केस टाइटल- बरेली हाईवेज प्रोजेक्ट लिमिटेड बनाम भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य

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