अधिकार क्षेत्र न रखने वाली अदालतों को भेजे गए मामले प्रिंसिपल जिला जज को वापस किए जाएंगे: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के लिए महत्वपूर्ण प्रशासनिक आदेश जारी किया। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई भी मामला गलती से ऐसी अदालत को आवंटित हो जाता है, जिसके पास उसे सुनने का अधिकार क्षेत्र नहीं है तो फाइल को तत्काल संबंधित प्रिंसिपल जिला एंड सेशन जज को वापस करना होगा ताकि उसे सही अधिकार क्षेत्र वाली सक्षम अदालत को नए सिरे से आवंटित किया जा सके।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने राष्ट्रीय राजधानी के सभी जिलों के प्रिंसिपल जिला एंड सेशन जजों को इस संबंध में प्रशासनिक परिपत्र (Administrative Circular) जारी करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई मामला अनजाने में ऐसी अदालत को भेज दिया जाता है, जिसके पास अधिकार क्षेत्र की कमी है तो संबंधित न्यायिक अधिकारी तुरंत फाइल को प्रिंसिपल जिला एंड सेशन जज को लौटा देंगे ताकि इसे सक्षम अदालत के समक्ष रखा जा सके।
यह निर्देश एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसने किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice - JJ Act) के तहत पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह आदेश ऐसी अदालत द्वारा दिया गया, जिसे इस मामले पर फैसला सुनाने का अधिकार नहीं था।
अदालत ने पाया कि सेशन जज के समक्ष दायर अपील में यह तय किया जाना था कि क्या कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे यानी याचिकाकर्ता पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दिल्ली में बच्चों के खिलाफ अपराधों या बाल अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए बाल न्यायालयों को विधिवत अधिसूचित किया गया।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अपीलें विशेष रूप से JJ Act की धारा 101 के तहत विशेष रूप से बाल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। इस संदर्भ में उत्तर-पूर्वी जिले कड़कड़डूमा कोर्ट्स की एडिशनल सेशन जज -02 की अदालत के पास ऐसी अपील सुनने और तय करने का अधिकार नहीं था।
जस्टिस शर्मा ने टिप्पणी की कि भले ही यह मामला प्रशासनिक या लिपिकीय त्रुटि के कारण गलती से उस सेशन जज को मार्क कर दिया गया हो, पीठासीन अधिकारी को फाइल को वापस प्रिंसिपल जिला एंड सेशन जज को भेजना चाहिए था ताकि इसे सक्षम बाल न्यायालय के समक्ष रखा जा सके। कोर्ट ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि याचिकाकर्ता जिसे जेजे बोर्ड ने किशोर घोषित किया था, उसके खिलाफ मृतक के पिता द्वारा दायर अपील पर एक ऐसी अदालत से वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने का आदेश आया, जो उस अपील का न्याय करने में सक्षम नहीं थी।
इस महत्वपूर्ण आदेश के साथ याचिका का निपटारा कर दिया गया। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया है कि इस आदेश की एक प्रति तत्काल जानकारी और अनुपालन के लिए दिल्ली के सभी जिलों के प्रिंसिपल जिला एंड सेशन जजों के बीच वितरित की जाए।