Insurance Act | सर्वेक्षक निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, उन्हें बीमा कंपनी की 'कठपुतली' नहीं कहा जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी दुर्घटना में हुए नुकसान का आकलन करके बीमा कंपनी द्वारा पॉलिसीधारक को देय राशि निर्धारित करने वाले व्यक्तियों को कंपनी की "कठपुतली" नहीं कहा जा सकता।
जस्टिस मनोज जैन ने कहा,
"वे निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम करते हैं और ऐसे सर्वेक्षकों और हानि-निर्धारकों को बीमा अधिनियम, 1938 के तहत बनाए गए नियमों में निर्दिष्ट अपने कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और अन्य पेशेवर आवश्यकताओं के संबंध में आचार संहिता का पालन करना अनिवार्य है।"
यह टिप्पणी जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा एक बीमा दावे में सर्वेक्षक की रिपोर्ट जारी करने के बाद की गई, जिसमें कहा गया था कि 'बीमा कंपनी सर्वेक्षक को भुगतान करने वाली थी और ऐसा सर्वेक्षक अपने स्वामी को नाराज नहीं कर सकता था।'
यह दावा पॉलिसीधारक के भवन में लगी आग के कारण उत्पन्न हुआ था, जिससे उसके कपड़ों का स्टॉक धू-धू कर जलने लगा था।
हालांकि, पॉलिसीधारक के अनुसार, नुकसान 5,138 कपड़ों का था, लेकिन संबंधित उत्पादन प्रभारी से की गई पूछताछ और रिकॉर्ड में कुछ छेड़छाड़ मानते हुए, सर्वेक्षक ने यह निष्कर्ष निकाला कि नुकसान केवल 1500 कपड़ों का था, जो आग प्रभावित क्षेत्र में पड़े थे।
इस प्रकार, बीमाकर्ता ने पॉलिसीधारक द्वारा दावा किए गए 16,40,991 रुपये के मुकाबले नुकसान का आकलन 4,73,097 रुपये किया था।
जिला उपभोक्ता फोरम ने पॉलिसीधारक के पक्ष में फैसला सुनाया और वैधानिक उपायों को अपनाने के बाद, बीमाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने पाया कि बीमा कंपनी ने सर्वेक्षक का हलफनामा प्रस्तुत नहीं किया और न ही साक्ष्य के स्तर पर अपने बचाव में सर्वेक्षक की जांच की। इस प्रकार, उसने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
हालांकि, न्यायालय का मानना था कि जिला फोरम की यह टिप्पणी उचित नहीं थी कि सर्वेक्षक, बीमा कंपनी के वेतनभोगी होने के बावजूद, उनके पक्ष में अपनी रिपोर्ट दे रहा था।
न्यायालय ने कहा, "सर्वेक्षकों को कठपुतली नहीं कहा जा सकता...सर्वेक्षक को इस तरह सामान्य और अस्पष्ट तरीके से फटकार नहीं लगाई जा सकती।"
साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि सर्वेक्षक की रिपोर्ट को बीमा दावे में एकमात्र निर्णायक कारक भी नहीं कहा जा सकता।
न्यायालय ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हरेश्वर एंटरप्राइजेज (2021) मामले का हवाला दिया, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि यद्यपि किसी भी अनुमोदित सर्वेक्षक द्वारा नुकसान का आकलन एक पूर्वापेक्षा है, लेकिन सर्वेक्षक की रिपोर्ट अंतिम निर्णय नहीं है और यह निर्णय लेने वाले प्राधिकारी का काम है कि वह यह आकलन करे कि साक्ष्य विश्वसनीय है या नहीं।
अंततः, न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।