दोस्ती रेप का लाइसेंस नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की

Update: 2025-10-23 07:00 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि दोस्ती किसी आरोपी को पीड़ित के साथ बार-बार दुष्कर्म करने और उसे बेरहमी से पीटने का लाइसेंस नहीं देती।

जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने POCSO Act से जुड़े मामले में एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। आरोपी ने दलील दी थी कि वह और पीड़िता दोस्त थे। यह मामला सहमति से बने संबंध का हो सकता है।

न्यायालय ने इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए कहा,

“आवेदक की ओर से यह दलील कि आवेदक और शिकायतकर्ता दोस्त थे, इसलिए यह सहमति से बने संबंध का मामला हो सकता है, इस अदालत द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि भले ही संबंधित पक्ष दोस्त थे। दोस्ती आवेदक को पीड़ित के साथ बार-बार बलात्कार करने उसे अपने दोस्त के घर में बंद करने और बेरहमी से पीटने का कोई लाइसेंस नहीं देती है।”

यह FIR एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़की की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी। लड़की ने आरोप लगाया कि वह आरोपी को पड़ोसी के रूप में कई सालों से जानती थी। उसने आरोप लगाया कि आरोपी उसे अपने दोस्त के घर ले गया, जहां उसने लड़की को पीटा और बार-बार यौन उत्पीड़न किया।

FIR भारतीय न्याय संहिता 2023 की धाराओं 64(2), 115(2), 127(2) और 351 के साथ-साथ POCSO Act 2012 की धारा 4 के तहत दर्ज की गई थी।

पीड़िता का कहना था कि डर के कारण उसने शुरू में यह घटना किसी को नहीं बताई और न ही उसने मेडिकल जांच कराई। आरोपी की मां और पीड़िता की मां के बीच हुए झगड़े के बाद पीड़िता ने अपनी मां को घटना के बारे में बताया, जिसके बाद पुलिस से संपर्क किया गया और FIR दर्ज हुई।

आरोपी ने दावा किया कि FIR दर्ज होने में 11 दिन की देरी हुई और घटना की तारीख को लेकर भी विसंगतियाँ थीं, इसलिए यह मामला सहमति के संबंध का था। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने कहा कि आरोप गंभीर हैं। आरोपी ने पिछली चार बार अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने या वापस लिए जाने के बावजूद जांच में सहयोग नहीं किया।

कोर्ट ने आरोपी की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि FIR दर्ज करने में देरी या गुमशुदगी की रिपोर्ट की तारीख में विसंगति के तर्क को इस चरण में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह परीक्षण (trial) का विषय है।

न्यायालय ने कहा,

“यह अदालत मानती है कि नाबालिग होने के कारण वह सदमे और शर्म की भावना में थी, जिसके चलते वह अपने माता-पिता या पुलिस को कुछ भी बताने से झिझक रही थी। जैसा कि उसके बयान से स्पष्ट है कि वह अपने माता-पिता की उपस्थिति में मेडिकल जांच नहीं कराना चाहती थी।

कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि आरोपों की गंभीरता और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से प्रथम दृष्टया आरोपों की पुष्टि होती है। इसलिए अग्रिम जमानत देने का कोई मामला नहीं बनता है।

Tags:    

Similar News