पटाखों के दुरुपयोग से न केवल आंखों में चोट लग सकती है, बल्कि अन्य शारीरिक नुकसान भी हो सकते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट ने जनहित याचिका में समावेशी प्रार्थनाओं का आह्वान किया

Update: 2025-03-19 09:31 GMT
पटाखों के दुरुपयोग से न केवल आंखों में चोट लग सकती है, बल्कि अन्य शारीरिक नुकसान भी हो सकते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट ने जनहित याचिका में समावेशी प्रार्थनाओं का आह्वान किया

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को पटाखों के निर्माण के दौरान उचित सुरक्षा उपायों के अभाव में पटाखों के उपयोग के कारण होने वाली आंखों की चोटों के मुद्दे से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई की।

चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि पटाखों के दुरुपयोग से न केवल आंखों में चोट लग सकती है बल्कि शारीरिक नुकसान भी हो सकता है और पालतू जानवरों और जानवरों को भी नुकसान हो सकता है।

न्यायालय ने याचिकाकर्ता संगठन- ऑक्यूलर ट्रॉमा सोसाइटी ऑफ इंडिया की ओर से पेश हुए एडवोकेट राहुल बजाज से जनहित याचिका के प्रार्थना खंड में संशोधन करने और प्रार्थना को अधिक समावेशी प्रकृति का बनाने के लिए कहा।

न्यायालय ने कहा,

"इस जनहित याचिका में उठाई गई चिंताएं नेत्र संबंधी चोटों को रोकने के लिए पटाखों के सुरक्षित उपयोग के लिए प्रार्थनाओं और दिशा-निर्देशों के निर्माण और कार्यान्वयन से संबंधित हैं। पटाखों के दुरुपयोग से न केवल नेत्र संबंधी चोटें लगने की संभावना है, बल्कि शरीर के किसी अन्य अंग यहां तक ​​कि पालतू जानवरों और अन्य जानवरों को भी चोट लगने की संभावना है।"

इसमें आगे कहा गया,

"इस मामले के उपरोक्त दृष्टिकोण को देखते हुए हम इस जनहित याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक हैं, जिसका उद्देश्य न केवल नेत्र संबंधी चोटों को रोकने के उपाय विकसित करना है, बल्कि अन्य शारीरिक चोटों और सामान्य रूप से स्वास्थ्य पर अन्य बुरे प्रभावों को रोकना भी है।"

न्यायालय ने बजाज को याचिका में संशोधन करने और पटाखों के अन्य दुरुपयोगों के संबंध में अपने कथन प्रस्तुत करने के साथ-साथ तदनुसार प्रार्थना खंड में संशोधन करने के लिए आवेदन दायर करने की अनुमति दी।

न्यायालय ने कहा,

"हम उक्त उद्देश्य के लिए दो सप्ताह का समय देते हैं। याचिकाकर्ता द्वारा दो सप्ताह के भीतर उचित संशोधन आवेदन पेश किया जाए।"

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने बजाज से मौखिक रूप से कहा कि पटाखों के दुरुपयोग से न केवल आंखों में चोट लग रही है बल्कि शारीरिक चोट भी लग रही है। इसलिए याचिका को केवल एक तरह की चोट तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए और समावेशी दिशा-निर्देशों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

चीफ जस्टिस ने कहा,

“एकीकृत प्रकार के दिशा-निर्देश होने चाहिए। पटाखों से आंखों में चोट लगने की संभावना होती है। एक ही पटाखा एक ही तंत्र में काम करता है और सिर में चोट लगने की संभावना होती है। एकीकृत दिशा-निर्देश होने चाहिए। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप प्रार्थनाओं को संशोधित करें और एक व्यापक याचिका दायर करें।”

अब मामले की सुनवाई 09 अप्रैल को होगी।

टाइटल: ऑक्यूलर ट्रॉमा सोसाइटी ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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