धर्मों का मज़ाक उड़ाने या नफरत फैलाने वाली फिल्मों को सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता अगर वह धर्मों का मज़ाक उड़ाती हो, नफरत फैलाती हो या समाज की शांति बिगाड़ती हो।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस मनीष प्रीतम सिंह अरोड़ा ने कहा कि अगर कोई फिल्म यह दिखाती है कि कानून हाथ में लेना सही है और उसका महिमामंडन करती है, तो यह लोगों के कानून पर भरोसे को कमजोर कर सकती है।
उन्होंने कहा कि जब ऐसी सोच को हत्या और नरभक्षण (Cannibalism) जैसे खौफनाक दृश्यों के साथ दिखाया जाता है, तो यह समाज की शांति और सुरक्षा के लिए खतरनाक है।
मामला क्या था?
फिल्म “मासूम कातिल” के डायरेक्टर ने 2022 में CBFC (सेंसर बोर्ड) के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाई गई थी। डायरेक्टर का कहना था कि फिल्म को 'A' सर्टिफिकेट के साथ रिलीज़ किया जा सकता है।
लेकिन हाईकोर्ट ने सेंसर बोर्ड का फैसला बरकरार रखा और कहा कि —
• फिल्म बहुत ज़्यादा हिंसक और वीभत्स है।
• इसमें कोई सकारात्मक संदेश नहीं है।
• इसे दिखाने से दर्शकों के दिमाग पर गलत असर पड़ेगा और लोग हिंसा को सामान्य मानने लगेंगे।
कोर्ट के अहम बिंदु
• फिल्म में इंसानों और जानवरों पर हिंसा दिखाई गई है।
• इसमें धर्म, जाति और समुदायों पर अपमानजनक बातें कही गई हैं।
• फिल्म में स्कूली बच्चे कानून तोड़ते, हिंसा और समाजविरोधी काम करते दिखाए गए हैं।
• फिल्म इन गलत कामों को ग्लैमराइज करती है, यानी बुरा दिखाने की बजाय आकर्षक बनाकर पेश करती है।
कोर्ट का निर्णय:
कोर्ट ने कहा कि यह फिल्म संविधान और कानून दोनों के खिलाफ है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी (Article 19) का अधिकार भी सीमाओं के साथ है — यानी किसी को भी समाज की शांति, नैतिकता और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली फिल्म बनाने की छूट नहीं है।
कोर्ट ने साफ किया कि “मासूम कातिल” जैसी फिल्में जनता को हिंसा और नफरत के लिए उकसा सकती हैं, इसलिए इन्हें रिलीज़ की इजाज़त नहीं दी जा सकती।