एग्जामिनेशन सिस्टम खराब लिखावट के लिए स्टूडेंट को दंडित करने की अनुमति नहीं देता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-03-25 05:58 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एग्जामिनेशन सिस्टम खराब लिखावट के लिए स्टूडेंट को दंडित करने की अनुमति नहीं देता।

हालांकि, अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि स्टूडेंट को ठीक से पढ़ने योग्य उत्तर लिखने चाहिए और परीक्षकों को पूरी तरह से समझ से बाहर की लिखावट का मूल्यांकन करने के लिए नहीं कहा जा सकता।

जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि यद्यपि जो स्टूडेंट जो परीक्षा देता है, वह पेपर का मूल्यांकन कराने का हकदार है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि अगर लिखावट इतनी अस्पष्ट है कि कोई भी इसे नहीं पढ़ सकता तो वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।

अदालत ने कहा,

“यह स्टूडेंट का कर्तव्य है कि वह कम से कम समझदारी से लिखे। परीक्षकों को उन लिखावटों का मूल्यांकन करने के लिए नहीं कहा जा सकता है, जो पूरी तरह से समझ से बाहर हैं। यदि कोई स्टूडेंट इस तरह से अपना उत्तर लिखता है तो वह राहत मांगने के लिए अदालत में नहीं आ सकता है। इसलिए अदालत का दृष्टिकोण चौकस और मामले पर आधारित होना चाहिए।”

इसमें कहा गया कि अगर अदालत किसी स्टूडेंट की लिखावट को पूरी तरह से समझ से बाहर पाती है तो उसे अनिवार्य रूप से राहत देने से इनकार कर देना चाहिए।

अदालत ने आगे कहा,

“उत्तर पुस्तिकाओं की जांच करने वाले परीक्षकों के सामने कठिन काम होता है, खासकर उच्च शिक्षा संस्थानों में। यह सुनिश्चित करना भी स्टूडेंट का कर्तव्य है कि उनके उत्तर ठीक से पढ़ने योग्य हों। यदि किसी अभ्यर्थी की लिखावट बहुत खराब है तो एक व्यक्तिगत परीक्षक को उत्तर पुस्तिका पर ऐसा देखने पर माफ़ किया जा सकता है।”

जस्टिस शंकर ने प्रतिस्पर्धा कानून विषय में पूरक परीक्षा के लिए हग्स उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन की मांग करने वाली दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ स्टूडेंट की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

उत्तर पुस्तिका में परीक्षक ने टिप्पणी लिखी थी। इसमें कहा गया कि "बहुत खराब लिखावट, शायद ही कुछ पढ़ सका।"

अदालत ने कहा कि उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन का कोई सवाल ही नहीं है, लेकिन वह इसके मूल्यांकन की अनुमति देने को इच्छुक है। इसमें कहा गया कि जिस तरह से परीक्षक द्वारा उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन किया गया, उसे उचित मूल्यांकन बिल्कुल भी नहीं माना जा सकता है।

अदालत ने कहा,

“किसी उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन, जिसे मूल्यांकनकर्ता/परीक्षक पढ़ने में असमर्थ है, उसको कानून में मूल्यांकन के रूप में बिल्कुल भी नहीं माना जा सकता। इसलिए पुनर्मूल्यांकन का कोई सवाल ही नहीं है।”

यह स्पष्ट करते हुए कि वह परीक्षक की गलती नहीं ढूंढ रहे हैं, जस्टिस शंकर ने कहा कि यदि लिखावट बिल्कुल भी समझ में नहीं आती है तो स्टूडेंट संबंधित उत्तर के लिए चिह्नित किए जाने का हकदार है।

अदालत ने आगे जोड़ा,

“आखिरकार, एग्जामिनेशन सिस्टम खराब लिखावट के लिए स्टूडेंट को दंडित करने की अनुमति नहीं देता है। हालांकि, वर्तमान मामले में यही हुआ है।”

तदनुसार, अदालत ने स्टूडेंट को यूनिवर्सिटी को उत्तर पुस्तिका की टाइप की हुई प्रतिलिपि प्रदान करने की अनुमति दी और आदेश दिया कि इसे उस परीक्षक के समक्ष रिकॉर्ड पर रखा जाए, जिसने शुरू में पेपर की जांच की थी।

अदालत ने परीक्षक को टाइप की गई प्रतिलेख के आधार पर उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन करने का निर्देश दिया, बशर्ते कि वह संतुष्ट हो कि प्रतिलेख हस्तलिखित उत्तर पुस्तिका से बिल्कुल मेल खाता हो।

केस टाइटल: माधव चौधरी बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी एवं अन्य।

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