परीक्षा में असफल होने के बाद आवेदन पत्र में सुधार का दावा स्वीकार्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-12-15 11:50 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी परीक्षा या भर्ती प्रक्रिया में असफल होने के बाद आवेदन पत्र में विवरण सुधारने की मांग स्वीकार नहीं की जा सकती। अदालत ने कहा कि प्रत्येक अभ्यर्थी की जिम्मेदारी है कि वह ऑनलाइन आवेदन अंतिम रूप से जमा करने से पहले सभी जानकारियों की सावधानीपूर्वक जांच करे।

जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की खंडपीठ ने कहा कि किसी भी परीक्षा के लिए आवेदन करने वाला उम्मीदवार यह अपेक्षा रखता है कि वह भरे गए विवरणों को सत्यापित करे और आवश्यक संशोधन समय रहते कर ले। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उम्मीदवार यह कहकर अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकते कि उन्हें अपनी गलती का एहसास तब हुआ, जब वे परीक्षा या चयन प्रक्रिया में असफल हो गए।

अदालत ने कहा कि इस तरह के असफलता के बाद सुधार संबंधी दावे स्वीकार्य नहीं हैं। न्यायालय के अनुसार, ऐसे कई अन्य उम्मीदवार हो सकते हैं, जिन्होंने गलत विवरण भरे हों। इसी कारण चयन प्रक्रिया से बाहर हो गए हों। किसी एक उम्मीदवार को राहत देना समानता के सिद्धांत का उल्लंघन होगा और अन्य अभ्यर्थियों के साथ अन्याय करेगा।

यह टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते हुए की गई, जो दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल (एग्जीक्यूटिव) पुरुष/महिला पदों की भर्ती से जुड़ी थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने साइबर कैफे से आवेदन भरा था और नेटवर्क समस्या के कारण दो प्रश्नों में गलत विकल्प चुन लिए गए। बाद में उसने इन त्रुटियों को सुधारने और खुद को दिल्ली पुलिस कर्मचारी की संतान होने के आधार पर मिलने वाली छूट के लिए पात्र मानने की मांग की थी।

याचिकाकर्ता ने इस संबंध में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) का रुख किया, लेकिन वहां से उसे राहत नहीं मिली। इसके बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि भर्ती प्राधिकरण को उम्मीदवार की स्वयं की गलती के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने भर्ती विज्ञापन की शर्तों का हवाला देते हुए कहा कि उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि आवेदन करने से पहले उम्मीदवार सभी निर्देशों को ध्यान से पढ़ें और एक बार आवेदन पत्र जमा हो जाने के बाद किसी भी प्रकार के संशोधन या सुधार का अनुरोध स्वीकार नहीं किया जाएगा।

अदालत ने यह भी नोट किया कि आवेदन पत्र में दिए गए प्रश्नों में से एक उम्मीदवार की पात्रता से सीधे जुड़ा था क्योंकि उसी के आधार पर उसे लंबाई में छूट मिल सकती थी, जो निर्धारित मानकों को पूरा करने के लिए आवश्यक थी। ऐसे में उस प्रश्न को महत्वहीन या औपचारिक नहीं माना जा सकता।

खंडपीठ ने कहा कि चयन प्रक्रिया में भाग लेने के बाद कोई भी उम्मीदवार यह दावा नहीं कर सकता कि आवेदन पत्र में भरा गया कोई विवरण अप्रासंगिक है। इन सभी कारणों से अदालत ने याचिका को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और कैट के आदेश को बरकरार रखा।

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