आर्थिक अपराधी की मेडिकल वजहों से विदेश जाने की अर्ज़ी तब सही नहीं है, जब भारत में इलाज आसानी से मिल रहा हो: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि एक आर्थिक अपराधी की मेडिकल वजहों का हवाला देकर विदेश जाने की अर्ज़ी तब सही नहीं है, जब भारत में सही इलाज आसानी से मिल रहा हो।
जस्टिस रविंदर डुडेजा ने कहा,
“यह कोर्ट आर्टिकल 21 के तहत पर्सनल लिबर्टी के प्रिंसिपल्स को जानता है। हालांकि, इन अधिकारों को पब्लिक इंटरेस्ट के साथ बैलेंस करना होगा ताकि यह पक्का हो सके कि गंभीर आर्थिक अपराधों के आरोपी लोग कानूनी प्रोसेस के लिए तैयार रहें।”
यह बेंच एक ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया की अर्ज़ी पर विचार कर रही थी, जिसके खिलाफ Net4 नेटवर्क सर्विसेज़ लिमिटेड (NNSL) में डायरेक्टर के पद पर रहते हुए लगभग 208 करोड़ रुपये की हेराफेरी के लिए लुक आउट सर्कुलर जारी किया गया।
आरोप है कि पिटीशनर ने Net4 India Ltd. (N4IL) के रेवेन्यू के करीब ₹60 करोड़ गलत तरीके से NNSL को डायवर्ट किए, जिससे आखिर में उसके परिवार और उससे जुड़ी एंटिटी को फायदा हुआ और N4IL, उसके क्रेडिटर्स और स्टेकहोल्डर्स को गलत नुकसान हुआ।
जांच एजेंसी— SFIO ने आगे बताया कि पिटीशनर जांच के दौरान सहयोग नहीं कर रही थी और उसके भागने का खतरा था।
दूसरी ओर, पिटीशनर ने दावा किया कि वह 76 साल की विधवा है, ब्रिटिश नागरिक है। उसे गंभीर मेडिकल बीमारियां हैं। हालांकि, ट्रैवल पर रोक के कारण उसे दो साल से ज़्यादा समय से भारत में रहना पड़ रहा है।
यह कहा गया कि अर्जेंट मेडिकल इलाज के लिए विदेश जाने का उसका अधिकार भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत गारंटी वाली “पर्सनल लिबर्टी” का एक ज़रूरी हिस्सा है, जो विदेशी नागरिकों पर भी लागू होता है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने उसे कोई राहत देने से यह देखते हुए मना कर दिया कि उसने मास्टर रीसेलर एग्रीमेंट पर साइन किया, जिसके आधार पर N4IL का पूरा बिज़नेस सात साल के लिए NNSL को ट्रांसफर कर दिया गया, जो शिकायत के अनुसार, क्रेडिटर्स और बैंकों को जायज़ बकाया चुकाने से बचने के लिए किया गया।
इसने आगे कहा,
“मेडिकल अर्जेंसी की दलील इस कोर्ट को राज़ी नहीं करती। पिटीशनर यह साबित नहीं कर पाई कि जिस मेडिकल प्रोसीजर के लिए रिक्वेस्ट की गई... वह इंडिया में अवेलेबल नहीं है... पिटीशनर ने ट्रायल कोर्ट के सामने फाइनेंशियल इनकैपेबिलिटी की दलील नहीं दी, न ही उसने कोई मेडिकल ओपिनियन दिया, जिससे यह पता चले कि प्रोसीजर ज़रूरी तौर पर यूनाइटेड किंगडम में ही किया जाना चाहिए। इसे देखते हुए आर्टिकल 21 के मैंडेट पर विदेश यात्रा करने का उसका दावा सही नहीं है।”
मंदिर सिंह टॉड बनाम ED पर भरोसा किया गया, जहां यह माना गया कि जब देश में सही इलाज अवेलेबल है तो सिर्फ़ विदेशी मेडिकल फैसिलिटी को तरजीह देना, गंभीर इकोनॉमिक-ऑफेंस के आरोपों का सामना कर रहे आरोपी को जूरिस्डिक्शन छोड़ने की इजाज़त देने को सही नहीं ठहराता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पिटीशनर अपने पिछले बर्ताव से जुड़ी खराब बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए पाबंदियों में ढील मांगने के लिए सिर्फ़ जांच पूरी होने पर भरोसा नहीं कर सकती।
इसने कंवर दीप सिंह बनाम डायरेक्टरेट ऑफ़ एनफोर्समेंट मामले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि एक आरोपी को सही मेडिकल इलाज और अच्छी हेल्थ केयर पाने का बुनियादी अधिकार है। हालांकि, इस अधिकार को प्रॉसिक्यूटिंग एजेंसी की इस सही चिंता के साथ बैलेंस किया जाना चाहिए कि आरोपी भाग सकता है।
इसलिए उसकी अर्जी खारिज कर दी गई।
Case title: Mrs Pawanjot Kaur Sawhney v. Union Of India And Anr