
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि यदि दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम 2004 (Delhi VAT) के तहत डीलर को रिफंड देने में देरी डीलर के कारण हुई है तो रिफंड पर ब्याज देने के उद्देश्य से देरी की ऐसी अवधि को बाहर रखा जाएगा।
Delhi VAT Act की धारा 38(3)(ए)(ii) में अतिरिक्त कर जुर्माना आदि की वापसी के लिए दो महीने की अवधि निर्धारित की गई, यदि रिफंड की अवधि एक तिमाही है।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस जनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने Delhi VAT Act की धारा 42(1) के स्पष्टीकरण का हवाला दिया और कहा,
“यदि रिफंड देने में देरी उक्त व्यक्ति (डीलर) के कारण हुई है चाहे पूरी तरह से या आंशिक रूप से तो उसके कारण हुई देरी की अवधि को उस अवधि से बाहर रखा जाएगा, जिसके लिए ब्याज देय है।”
इस मामले में याचिकाकर्ता स्थायी शहरी गतिशीलता सेवा प्रदाता जो वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहन बेड़े का संचालन करता है, ने 2017-18 की पहली तिमाही के लिए दाखिल रिटर्न के अनुसार ब्याज सहित 25,40,422 रुपये की वापसी की मांग की थी। VAT आयुक्त ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता द्वारा उचित बैंक विवरण प्रस्तुत किए जाने पर 8 जून, 2023 को वापसी प्रदान की गई।
7 फरवरी, 2023 से 8 जून, 2023 के बीच की अवधि के लिए ब्याज राशि का भी भुगतान किया गया। याचिकाकर्ता सितंबर 2017 से ब्याज न दिए जाने से व्यथित था, जिस तारीख से पात्रता उत्पन्न हुई थी। शुरू में न्यायालय ने नोट किया कि आयुक्त ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत बैंक विवरण गलत होने के मद्देनजर उक्त अवधि के लिए ब्याज देने से इनकार कर दिया था।
आयुक्त द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से सहमत होते हुए न्यायालय ने कहा,
“धारा 42(1) के स्पष्टीकरण के मद्देनजर, चूंकि बैंक विवरण में गलती डीलर के कारण हुई, इसलिए न्यायालय की राय में याचिकाकर्ता को किसी और ब्याज का हकदार नहीं माना जाएगा।”
याचिका को वापस लेते हुए खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल: लिथियम अर्बन टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम मूल्य वर्धित कर आयुक्त एवं अन्य।