दिल्ली हाईकोर्ट ने CESTAT द्वारा वित्तीय अधिकार क्षेत्र से बाहर अपील पर विरोधाभासी आदेश देने पर की आलोचना

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Update: 2025-03-25 13:50 GMT
दिल्ली हाईकोर्ट ने CESTAT द्वारा वित्तीय अधिकार क्षेत्र से बाहर अपील पर विरोधाभासी आदेश देने पर की आलोचना

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में नई दिल्ली स्थित कस्टम्स, एक्साइज और सर्विस टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (CESTAT) की कड़ी आलोचना की, क्योंकि उसने एक अपील में बार-बार विरोधाभासी आदेश पारित किए, जिसे वित्तीय अधिकार क्षेत्र न होने के कारण खारिज किया जाना चाहिए था।

जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस रजनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, "यह आदेश पूरी तरह से गलतियों की श्रृंखला को दर्शाता है, याचिका में एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति सामने आई है, जहां CESTAT ने अपने प्रारंभिक आदेश में की गई गलती को सुधारने के प्रयास में बार-बार नई गलतियां कर दीं, जिसके परिणामस्वरूप यह विवादित आदेश और वर्तमान चुनौती उत्पन्न हुई।"

हाईकोर्ट में यह अपील एक निजी कंपनी द्वारा दायर की गई थी, जो सेमी-फिनिश्ड कोएक्सियल केबल के आयात में संलग्न है। यह अपील कस्टम विभाग द्वारा लगभग एक दशक पहले दायर की गई अपील पर CESTAT द्वारा तीन विरोधाभासी आदेश पारित करने के बाद की गई थी।

विवाद आयातित सामान के कथित रूप से कम मूल्यांकन और उसकी जब्ती से जुड़ा था। कस्टम विभाग ने ₹29,66,805/- की मांग उठाई थी और ₹20 लाख के रिडेम्पशन फाइन के भुगतान पर सामान छुड़ाने का विकल्प दिया था।

आयुक्त द्वारा याचिकाकर्ता के पक्ष में अपील स्वीकार किए जाने के बाद, कस्टम विभाग ने CESTAT में अपील दायर की। शुरू में, CESTAT ने विभाग की अपील को याचिकाकर्ता/कंपनी की गैर-हाजिरी के कारण खारिज कर दिया। इस पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, "आश्चर्यजनक रूप से, राजस्व विभाग की अपील याचिकाकर्ता की गैर-उपस्थिति के कारण खारिज कर दी गई।"

इसके बाद, विभाग के अनुरोध पर पहले खारिज की गई अपील को बहाल किया गया और CESTAT ने माना कि आयुक्त ने उस इंजीनियर से जिरह नहीं की थी, जिसने प्रमाणित किया था कि याचिकाकर्ता ने अंतरराष्ट्रीय मूल्य के अनुसार सामान आयात किया था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने यह भी देखा कि "आश्चर्यजनक रूप से, राजस्व विभाग की अपील फिर से खारिज कर दी गई, जबकि इस निष्कर्ष का तार्किक परिणाम या तो मामले को पुनर्विचार के लिए भेजना था या पूरी तरह से राजस्व विभाग की अपील को स्वीकार करना था।"

अपनी अपील के दोबारा खारिज होने से परेशान होकर, विभाग ने पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसके बाद CESTAT ने पूरा आदेश वापस ले लिया और मामले को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, "CESTAT एक ही अपील में इतने विरोधाभासी आदेश नहीं दे सकता था, उचित कदम यह होता कि CESTAT पूरे मामले को फिर से सुनता, जो उसने नहीं किया।"

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि CESTAT में अपील के लिए वित्तीय सीमा ₹50 लाख है, जबकि इस मामले में विवादित राशि केवल ₹29,66,805/- और ₹20 लाख का जुर्माना थी, जो तय सीमा से कम है।

हाईकोर्ट ने कहा, "चूंकि CESTAT में अपील के लिए निर्धारित सीमा ₹50 लाख है और इस मामले में कुल विवादित राशि इससे कम है, इसलिए इस आधार पर ही CESTAT में अपील खारिज होनी चाहिए।"

कोर्ट ने यह भी अफसोस जताया कि 2011 से चला आ रहा विवाद एक दशक से लंबा खिंच गया और याचिकाकर्ता द्वारा 14 साल पहले दी गई बैंक गारंटी अब भी विभाग के पास रखी हुई थी, जिससे याचिकाकर्ता को बड़ा नुकसान हुआ।

अंततः, कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए, विभाग की अपील को वित्तीय सीमा के आधार पर खारिज कर दिया और विभाग को आदेश दिया कि वह याचिकाकर्ता की बैंक गारंटी 8 सप्ताह के भीतर जारी करे।

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