दिल्ली हाइकोर्ट ने Arms Act के तहत दर्ज एफआईआर खारिज की, आरोपी को पुलिस कल्याण कोष और वकीलों के निकायों को 50 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया
शस्त्र अधिनियम 1959 (Arms Act, 1959) के तहत व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर खारिज करते हुए दिल्ली हाइकोर्ट ने उसे दिल्ली पुलिस कल्याण कोष और तीन जिला न्यायालय बार एसोसिएशनों में जमा करने के लिए 50,000 रुपये का भुगतान करने को कहा।
जस्टिस अमित महाजन ने Arms Act की धारा 25 के तहत अपराध के लिए प्रीतपाल सिंह के खिलाफ दर्ज एफआईआर खारिज कर दी, यह देखते हुए कि उसके खिलाफ अपराध के आवश्यक तत्व नहीं बनाए गए।
वहीं इस तथ्य को देखते हुए कि मामले में आरोपपत्र दाखिल किया गया और राज्य मशीनरी को हरकत में लाया गया, अदालत ने कहा कि अगर सिंह को लागत का भुगतान किया जाता है तो न्याय का उद्देश्य पूरा हो जाएगा।
कोर्ट ने कहा,
“उपर्युक्त के मद्देनजर एफआईआर और उससे उत्पन्न होने वाली सभी परिणामी कार्यवाही रद्द की जाती है। बशर्ते कि याचिकाकर्ता द्वारा 50,000 रुपये की जुर्माने का भुगतान किया जाए, जिसमें से 20,000 रुपये दिल्ली पुलिस कल्याण कोष में जमा किए जाने चाहिए, 10,000 रुपये नई दिल्ली बार एसोसिएशन (पटियाला हाउस कोर्ट), 10,000 रुपये दिल्ली बार एसोसिएशन (तीस हजारी जिला न्यायालय) और 10,000 रुपये शाहदरा बार एसोसिएशन (कड़कड़डूमा जिला न्यायालय) को तारीख से कुछ सप्ताह के भीतर जमा किए जाने चाहिए।”
जस्टिस महाजन ने एफआईआर रद्द करने की मांग करने वाली सिंह की याचिका स्वीकार कर ली। सिंह को पुलिस ने अमेरिकी दूतावास के प्रवेश द्वार पर 14 जिंदा कारतूसों के साथ पकड़ा था, जहां वह अपने वीजा इंटरव्यू के उद्देश्य से प्रवेश कर रहा था।
जांच में पता चला कि सिंह कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी वैध लाइसेंस धारक था, जिसके पास पूरे भारत में .32 कैलिबर एनपीटी बोर हथियार ले जाने की अनुमति थी।
उसका कहना था कि वह प्रतिष्ठित व्यवसायी है और उसने कभी हथियार का दुरुपयोग नहीं किया। उसने कहा कि उसका ऐसे कारतूस ले जाने का कोई इरादा नहीं था, जिन्हें पुलिस ने जब्त किया और यह अनजाने में उसके पास था।
याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि शस्त्र अधिनियम की धारा 45 (डी) हथियार या गोला-बारूद के छोटे भागों का अधिग्रहण कब्जा या ले जाना, जो पूरक भागों के साथ उपयोग करने के लिए अभिप्रेत नहीं है अधिनियम के तहत अपराध नहीं बनाती है।
अदालत ने कहा,
"वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता के बैगेज में 14 जिंदा कारतूस पाए जाने के आरोप को छोड़कर रिकॉर्ड पर ऐसा कोई अन्य सबूत नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता के पास उक्त जिंदा कारतूस था।”
इसमें कहा गया कि कार्यवाही जारी रखना निरर्थक होगा। इसलिए यह सीआरपीसी की धारा 482 के तहत विवेकाधीन अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने और एफआईआर रद्द करने के लिए उपयुक्त मामला है।
केस टाइटल- प्रीतपाल सिंह बनाम राज्य