एमजे अकबर की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाई, प्रियंका रामानी की बरी होने के फैसले को दी गई है चुनौती

Update: 2025-12-16 10:55 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा दायर उस अपील की सुनवाई की तारीख आगे बढ़ा दी, जिसमें उन्होंने पत्रकार प्रिया रामानी को आपराधिक मानहानि मामले में बरी किए जाने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।

यह मामला रामानी द्वारा #MeToo आंदोलन के दौरान लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों से जुड़ा है।

जस्टिस रविंदर दुडेजा ने एमजे अकबर की ओर से दाखिल उस आवेदन को स्वीकार कर लिया जिसमें मई 2027 में तय सुनवाई को पहले कराने का अनुरोध किया गया था।

अदालत ने अब इस मामले को सुनवाई के लिए 16 मार्च 2026 को सूचीबद्ध किया।

गौरतलब है कि इस अपील को दिल्ली हाईकोर्ट ने जनवरी 2022 में ही स्वीकार कर लिया था, लेकिन अब तक इस पर अंतिम सुनवाई नहीं हो सकी थी।

एमजे अकबर ने अक्टूबर 2018 में दिल्ली की एक निचली अदालत में प्रिया रामानी के खिलाफ आपराधिक मानहानि की शिकायत दायर की थी।

यह शिकायत उस समय दर्ज की गई थी, जब #MeToo आंदोलन के तहत कई महिलाओं ने उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। रामानी ने उस दौरान एक ट्वीट के जरिए यह खुलासा किया कि वोग पत्रिका में पहले लिखे गए उनके एक लेख में जिस यौन उत्पीड़क का जिक्र था वह एमजे अकबर ही थे।

फरवरी, 2021 में ट्रायल कोर्ट ने प्रिया रामानी को बरी करते हुए एक अहम टिप्पणी की थी कि कोई महिला यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए दंडित नहीं की जा सकती। अदालत ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा का अधिकार, महिला के सम्मान और गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता।

हालांकि एमजे अकबर ने अपने अपील पत्र में इस फैसले को कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण बताया है। उनका कहना है कि ट्रायल कोर्ट ने स्वयं यह माना था कि रामानी के ट्वीट और लेख मानहानिकारक प्रकृति के थे इसके बावजूद उन्हें बरी कर दिया गया।

अपील में कहा गया कि जब अदालत ने यह निष्कर्ष निकाल लिया कि लेख और उसके बाद किए गए प्रकाशन मानहानिकारक थे और बचाव पक्ष की दलीलों को भी खारिज कर दिया गया तो ऐसे में बरी किया जाना तर्कसंगत नहीं है।

अपील में यह भी दलील दी गई है कि ट्रायल कोर्ट ने केवल बचाव की “संभावना” के आधार पर रामानी को बरी कर दिया, जो मानहानि कानून के स्थापित सिद्धांतों के विपरीत है।

एमजे अकबर का कहना है कि कानून के अनुसार यदि किसी मानहानिकारक बयान की सत्यता को लेकर संदेह है, तो वह बचाव का आधार नहीं बन सकता। किसी कथन के “संभवतः सत्य” होने से आरोपी को संरक्षण नहीं मिल सकता। ऐसे में ट्रायल कोर्ट द्वारा इस आधार पर बरी किया जाना एक गंभीर कानूनी भूल है, जिसे बरकरार नहीं रखा जाना चाहिए।

अब दिल्ली हाईकोर्ट इस हाई-प्रोफाइल मामले की सुनवाई मार्च, 2026 में करेगा।

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