दिल्ली हाईकोर्ट ने एलजी वीके सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में मेधा पाटकर की दोषसिद्धि बरकरार रखी

Update: 2025-07-29 11:47 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और सोशल एक्टिविस्ट मेधा पाटकर की दोषसिद्धि बरकरार रखी, जो 2001 में विनय कुमार सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि के मामले में है।

वीके सक्सेना वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल हैं।

जस्टिस शैलिंदर कौर ने निचली अदालत के निष्कर्षों में कोई अवैधता या भौतिक अनियमितता नहीं पाई और कहा कि दोषसिद्धि का आदेश साक्ष्यों और लागू कानून पर उचित विचार के बाद पारित किया गया।

न्यायालय ने कहा कि पाटकर अपनाई गई प्रक्रिया में कोई दोष या कानून में कोई त्रुटि साबित करने में विफल रहीं, जिसके परिणामस्वरूप न्याय की विफलता हुई।

निचली अदालत द्वारा पारित सजा के आदेश पर न्यायालय ने कहा कि इसके लिए हाईकोर्ट के पुनर्विचार क्षेत्राधिकार में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा लगाई गई परिवीक्षा की शर्त में संशोधन किया, जिसके तहत पाटकर को हर तीन महीने में एक बार निचली अदालत में पेश होना अनिवार्य था।

अदालत ने कहा कि पाटकर या तो स्वयं उपस्थित हो सकती हैं या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से या फिर पेशी के दौरान वकील के माध्यम से प्रतिनिधित्व कर सकती हैं।

न्यायालय ने 2 अप्रैल को निचली अदालत द्वारा पारित उस फैसले के खिलाफ पाटकर की याचिका का निपटारा कर दिया, जिसमें मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी गई।

उन्होंने उसी दिन पारित उस आदेश को भी चुनौती दी, जिसमें पाटकर को सजा पर दलीलें पेश करने के लिए निचली अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया गया।

न्यायालय ने सक्सेना के खिलाफ दर्ज मानहानि के मामले को साबित करने के लिए अतिरिक्त गवाह पेश करने और उससे पूछताछ करने का उनका आवेदन खारिज करने के खिलाफ उनकी याचिका भी खारिज कर दी।

अप्रैल में जस्टिस कौर ने पाटकर की सजा निलंबित कर दी थी और 25,000 रुपये के निजी मुचलके पर उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था।

पाटकर को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि के अपराध में दोषी ठहराया गया था।

सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ मामला दर्ज कराया। उस समय वे अहमदाबाद स्थित गैर-सरकारी संगठन नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।

सक्सेना ने 25 नवंबर, 2000 को "देशभक्त का असली चेहरा" टाइटल से प्रेस नोट जारी कर पाटकर के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया।

प्रेस नोट में पाटकर ने कहा,

"हवाला लेन-देन से आहत वीके सक्सेना खुद मालेगांव आए, एनबीए की तारीफ की और 40,000 रुपये का चेक दिया। लोक समिति ने भोलेपन से तुरंत रसीद और पत्र भेज दिया, जो उनकी ईमानदारी और रिकॉर्ड रखने की क्षमता को दर्शाता है। लेकिन चेक भुनाया नहीं जा सका और बाउंस हो गया। पूछताछ करने पर बैंक ने बताया कि खाता मौजूद ही नहीं है।"

पाटकर ने कथित तौर पर कहा कि सक्सेना देशभक्त नहीं बल्कि कायर हैं।

मेधा पाटकर को दोषी ठहराते हुए अदालत ने कहा कि मेधा पाटकर की हरकतें जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण हैं, जिनका उद्देश्य सक्सेना की प्रतिष्ठा को धूमिल करना था और उनकी प्रतिष्ठा और साख को भारी नुकसान पहुंचाया।

अदालत ने यह भी कहा कि पाटकर के बयान, जिनमें उन्होंने सक्सेना को देशभक्त नहीं बल्कि कायर कहा था। हवाला लेन-देन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया था न केवल अपने आप में मानहानिकारक थे बल्कि नकारात्मक धारणाएं भड़काने के लिए भी गढ़े गए थे।

केस टाइटल: मेधा पाटकर बनाम वी.के. सक्सेना एवं अन्य संबंधित मामले

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