दिल्ली हाइकोर्ट ने JNU की आलोचना की, जिसने अपने नियमों और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए स्टूडेंट को निष्कासित करके जबरदस्ती की

Update: 2024-04-10 08:12 GMT

अपने निष्कासन के खिलाफ Phd स्कॉलर की याचिका पर विचार करते हुए दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) अपने स्वयं के नियमों का पूर्ण उल्लंघन करते हुए और प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों की पूरी तरह अवहेलना करते हुए स्टूडेंट्स को निष्कासित करके जबरदस्ती की कार्रवाई कर रहा है।

जस्टिस सी हरि शंकर ने पिछले साल 08 मई को यूनिवर्सिटी के मुख्य प्रॉक्टर के कार्यालय द्वारा जारी कार्यालय आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें अंकिता सिंह को इस आधार पर निष्कासित किया गया कि उसने अध्यक्ष के कार्यालय में तोड़फोड़ की और स्टूडेंट्स और संकाय सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया।

अदालत ने कहा,

"यह पहला मामला नहीं है, जो JNU की इस अदालत के समक्ष स्टूडेंट को निष्कासित करके बलपूर्वक और दंडात्मक कार्रवाई कर रहा है, जो JNU द्वारा की जाने वाली प्रॉक्टोरियल जांच को नियंत्रित करने वाले अपने स्वयं के नियमों और नियमों का पूरी तरह से उल्लंघन है और प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों की पूरी तरह से अवहेलना है।"

सिंह ने कथित तौर पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों या प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले क़ानूनों का पालन किए बिना उन्हें निष्कासित करने के यूनिवर्सिटी के फैसले को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया।

JNU की ओर से पेश हुए वकील ने इस आधार पर याचिका की स्वीकार्यता पर प्रारंभिक आपत्ति जताई कि सिंह के पास यूनिवर्सिटी के क़ानूनों के तहत अपील का वैकल्पिक उपाय था। अदालत ने अगस्त 2022 में पारित कार्यालय आदेश पर ध्यान दिया, जिसके अनुसार कई अधिकारियों ने सिफारिश की कि सिंह को तत्काल आधार पर चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है। इसके लिए सक्षम प्राधिकारी को उनकी भलाई का आकलन करने और ज़रूरत पड़ने पर सहायता प्रदान करने के लिए कानूनी मेडिकल बोर्ड का गठन करना चाहिए।

अदालत के सवाल पर सिंह ने बताया कि उन्हें ऐसे किसी भी प्राधिकरण या ऐसी किसी समिति की कोई सिफारिश नहीं दी गई। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी प्रॉक्टोरियल जांच के रूप में कोई अन्य संचार नहीं किया गया, या उन्हें निष्कासित करने से पहले किसी भी आरोप के खिलाफ कारण बताने का कोई अवसर नहीं दिया गया।

अदालत ने कहा,

"अगर अंकिता सिंह ने जो कहा वह सही है तो एक बेहद परेशान करने वाली स्थिति सामने आई है।"

इसमें यह भी कहा गया कि यूनिवर्सिटी की महिला स्टूडेंट को तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है। साथ ही उसके द्वारा दुर्व्यवहार के विभिन्न आरोप बेहद गंभीर हैं।

जस्टिस शंकर ने कहा कि अगस्त 2022 के कार्यालय आदेश में न तो सिंह की बीमारी का उल्लेख किया गया और न ही उन दुर्व्यवहार या कदाचार की घटनाओं का उल्लेख किया गया, जिसके लिए वह दोषी है।

इसलिए अदालत ने कार्यालय आदेश के संचालन पर रोक लगा दी, जिसके तहत सिंह को निष्कासित किया गया और आदेश दिया कि उन्हें तुरंत उसी क्षमता में JNU में फिर से प्रवेश दिया जाएग, जिस क्षमता में वह पहले अपनी पढ़ाई कर रही थीं और उन्हें अपनी पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी जाएगी।

इस मामले को 09 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए अदालत ने JNU को याचिका पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए चार सप्ताह का और अवसर दिया।

केस टाइटल: अंकिता सिंह बनाम जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के कुलपति और अन्य

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