दिल्ली हाईकोर्ट ने JDU के आंतरिक चुनावों के खिलाफ याचिका खारिज की

Update: 2024-08-31 06:09 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने जनता दल यूनाइटेड (JDU) द्वारा 2016 में आयोजित आंतरिक पार्टी चुनावों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की। उक्त चुनाव में नीतीश कुमार को राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष चुना गया।

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने JDU के निष्कासित सदस्य गोविंद यादव द्वारा दायर याचिका खारिज की। उन्होंने 2016, 2019 और 2022 में आयोजित आंतरिक पार्टी चुनावों को इस आधार पर चुनौती दी थी कि वे पार्टी के संविधान का उल्लंघन करते हैं।

वह 2016 से 2021 तक लगातार पत्राचार के माध्यम से JDU द्वारा अपने पदाधिकारियों की सूची में संशोधन के संबंध में चुनाव आयोग को अधिसूचित परिवर्तनों से व्यथित थे। उनका कहना था कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29(ए)(9) का उल्लंघन करते हुए ये परिवर्तन किए गए।

उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मंच द्वारा नीतीश कुनार के चुनाव उसके बाद के अनुसमर्थन और 2016 में जदयू द्वारा चुनाव आयोग को सौंपे गए पत्र को चुनौती दी।

उन्होंने तर्क दिया कि निर्धारित आंतरिक पार्टी चुनावों को नए नोटिसों द्वारा दरकिनार कर दिया गया और पार्टी के संविधान के आपातकालीन प्रावधानों का उपयोग करके प्रतिद्वंद्वी सदस्यों को पार्टी पदाधिकारी घोषित कर दिया गया।

उन्होंने प्रस्तुत किया कि नीतीश कुमार के जदयू अध्यक्ष के रूप में चुनाव के बाद की सभी नियुक्तियाँ पार्टी के संविधान के उल्लंघन में की गईं और कुछ निहित स्वार्थों को आगे बढ़ाने के लिए की गईं।

याचिका खारिज करते हुए जस्टिस कौरव ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

न्यायालय ने कहा कि मौजूदा विवाद को शुरू में JDU के गुट ने सिंबल ऑर्डर के तहत उठाया। 2017 में अंतरिम आदेश पारित किया गया, जिसमें नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गुट के पक्ष में फैसला सुनाया गया था।

न्यायालय ने कहा,

“न्यायालय ने नोट किया कि ECI के 25.11.2017 के अंतिम आदेश ने नीतीश कुमार को पार्टी अध्यक्ष और उनके गुट को बिहार में वैध राज्य पार्टी के रूप में मान्यता दी। इस प्रकार सिंबल ऑर्डर के तहत अपना दावा खोने वाले प्रतिद्वंद्वी गुट द्वारा जारी 20.09.2017 के पत्र को विश्वसनीयता नहीं दी जा सकती है।”

इसमें कहा गया कि रिट याचिका में मांगी गई राहत की प्रकृति आरपी अधिनियम की धारा 29A के तहत जांच के दायरे से पूरी तरह बाहर है।

अदालत ने कहा,

“पूर्वगामी चर्चा के आलोक में न्यायालय को वर्तमान रिट याचिका में हस्तक्षेप करने या याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत प्रदान करने का कोई ठोस कारण नहीं मिलता। याचिका में योग्यता का अभाव है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसलिए रिट याचिका को लंबित आवेदनों के साथ खारिज किया जाता है।”

केस टाइटल- गोविंद यादव बनाम भारत संघ और अन्य।

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