सुनवाई के दौरान 'निष्पक्ष टिप्पणियों' पर मीडिया की सनसनी फैलाने वाली रिपोर्टिंग चिंताजनक: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान की गई 'केवल सनसनी फैलाने' के लिए की गई 'निष्पक्ष टिप्पणियों' की मीडिया रिपोर्टिंग के 'चिंताजनक चलन' की ओर इशारा किया।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा,
"हाल के दिनों में यह एक चिंताजनक चलन बन गया है कि किसी मामले की सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा की गई कुछ सबसे निष्पक्ष टिप्पणियों, जो कार्यवाही से जुड़ी भी हो सकती हैं या नहीं भी, की रिपोर्टिंग केवल सनसनी फैलाने के लिए की जाती है।"
जज ने आगे कहा,
"अदालती कार्यवाही की ऐसी रिपोर्टिंग, जो जनता में अधिक रुचि के साथ पढ़ने की जिज्ञासा पैदा कर सकती है, उसको यह समझे बिना स्वीकार कर लिया जाता है कि ऐसी टिप्पणियां कार्यवाही का हिस्सा नहीं हैं या मामले के गुण-दोष से संबंधित नहीं हैं। उन्हें किसी प्रमुखता या रिपोर्टिंग की आवश्यकता नहीं है।"
कोर्ट ने कहा कि मीडिया की ज़िम्मेदारी न केवल जनता को सही जानकारी उपलब्ध कराना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि संदर्भ से हटकर अहानिकर टिप्पणियों को मुख्य घटना बताकर अनावश्यक सनसनी न फैलाई जाए।
कोर्ट ने कहा,
"पत्रकारिता और रिपोर्टिंग में उनकी विशेषज्ञता के साथ किसी भी न्यायालय से इस बारे में मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है कि अदालती कार्यवाही से संबंधित क्या रिपोर्ट किया जा सकता है और क्या अप्रासंगिक है।"
कोर्ट अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले से संबंधित PMLA मामले के संबंध में श्रवण गुप्ता नामक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था।
उनका कहना था कि 16 और 17 जुलाई को मीडिया संस्थानों द्वारा कुछ झूठे, दुर्भावनापूर्ण और मानहानिकारक समाचार लेख प्रकाशित किए गए, जिनमें उनके वकील सीनियर एडवोकेट विकास पाहवा की पेशेवर प्रतिष्ठा और गरिमा को निशाना बनाया गया।
यह दलील दी गई कि रिपोर्टिंग में हाईकोर्ट के हवाले से झूठे बयान दिए गए, जो कथित तौर पर 16 जुलाई को सुनवाई के दौरान दिए गए।
याचिका में कहा गया कि संबंधित तिथि पर मामले की सुनवाई के बाद मामले को निर्णय के लिए सुरक्षित रख लिया गया, जबकि संबंधित मामलों की सुनवाई किसी अन्य तिथि के लिए स्थगित कर दी गई।
हालांकि, यह आरोप लगाया गया कि मीडिया हाउसेस ने सीनियर एडवोकेट के विरुद्ध की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को यह कहते हुए गलत तरीके से प्रस्तुत किया कि निर्देश मांगने का उनका आचरण सीनियर एडवोकेट के लिए "अनुचित" कार्य है।
यह दलील दी गई कि हाईकोर्ट द्वारा ऐसा कोई बयान कभी नहीं दिया गया और यह दर्ज न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं है।
आलोचना की गई मीडिया रिपोर्टें सीएनएन न्यूज़-18, द ट्रिब्यून ग्रुप, द टाइम्स ग्रुप, राभ्या-राभव कॉर्प प्राइवेट लिमिटेड (लॉ ट्रेंड), इंडियन एक्सप्रेस लिमिटेड और सीएसआर जर्नल द्वारा प्रकाशित की गईं।
इस प्रकार, याचिका में हाईकोर्ट द्वारा कथित रूप से की गई टिप्पणी को हटाने की मांग की गई।
याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस कृष्णा ने कहा कि मीडिया संस्थानों की यह पूर्ण ज़िम्मेदारी है कि वे समझदारी से रिपोर्टिंग करें और यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मीडिया रिपोर्टों का आम जनता पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, जिसमें कुछ कानूनी पेशेवर भी शामिल हो सकते हैं।
कोर्ट ने कहा,
"अधिकांश जनता कानूनी बारीकियों से अवगत नहीं हो सकती है और देश में घटित घटनाओं और न्यायालय में चल रही कार्यवाही के बारे में जानने के लिए पूरी तरह मीडिया रिपोर्टों पर निर्भर रहती है। मीडिया रिपोर्टिंग में सटीकता और निष्पक्षता की पूर्ण ज़िम्मेदारी मीडिया की है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि यह एक ऐसा मामला है, जहां सुनवाई के दौरान वकीलों द्वारा बार-बार स्थगन के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए एक सामान्य टिप्पणी की गई।
कोर्ट ने कहा,
"यह कहना और गलत आरोप लगाना कि यह टिप्पणी विशेष रूप से सीनियर एडवोकेट पाहवा के लिए थी, न केवल गलत है, बल्कि इसका उद्देश्य आम जनता के लिए सनसनीखेज समाचार तैयार करना है। इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि इससे उस व्यक्ति को कितना नुकसान हो सकता है, जो वादी का प्रतिनिधित्व करने के अपने कर्तव्य का पूरी लगन से निर्वहन कर रहा है।
इन टिप्पणियों के साथ अब किसी और स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है। यह अपेक्षित है कि प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान स्वयं इस पर विचार करेंगे कि क्या इस तरह की रिपोर्टिंग को उनके मीडिया पोर्टलों पर जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके लिए किसी और निर्देश की आवश्यकता नहीं है।"
Title: SHRAVAN GUPTA v. DIRECTORATE OF ENFORCEMENT