निजी समझौते से मकान-मालिक अपने कानूनी अधिकार नहीं छोड़ सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट, 1958 के तहत मकान-मालिक को मिले अधिकार किसी भी निजी समझौते या कॉन्ट्रैक्ट से खत्म नहीं किए जा सकते।
जस्टिस अनुप जयराम भांभानी ने कहा कि अगर कोई कॉन्ट्रैक्ट किसी व्यक्ति को कानून में दिए गए अधिकारों या उपायों का इस्तेमाल करने से रोकता है, तो वह कॉन्ट्रैक्ट कानून के हिसाब से बिल्कुल अवैध है।
किरायेदारों का दावा क्या था?
किरायेदारों ने कहा कि मकान-मालिक के पूर्वजों ने पहले ही एक समझौता कर दिया था, जिसमें उन्होंने DRC Act के तहत अपने अधिकार छोड़ दिए थे। इसलिए अब वे बोना फाइड जरूरत के आधार पर बेदखली नहीं मांग सकते।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि—
• यह माना नहीं जा सकता कि मकान-मालिक या उसके परिवार को भविष्य में कभी भी घर की जरूरत नहीं पड़ेगी।
• कोई भी समझौता ऐसा नहीं हो सकता जो मकान-मालिक को हमेशा के लिए बेदखली याचिका दायर करने से रोक दे।
• ऐसे तर्क कानूनी रूप से गलत हैं।
कोर्ट ने यह भी noted किया कि किरायेदार पिछले 85 साल से इस संपत्ति में रह रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मकान-मालिक अपने अधिकार खो देंगे।
हाईकोर्ट ने किरायेदारों की याचिका को ₹50,000 लागत के साथ खारिज कर दिया।