हाईकोर्ट ने सोनम वांगचुक को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2024-10-09 09:59 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और लद्दाख के उनके सहयोगियों को पर्यावरण जागरूकता बढ़ाने और लद्दाख के लिए छठी अनुसूची का दर्जा देने की मांग के लिए जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति देने की मांग पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार से भी जवाब मांगा और मामले की सुनवाई 22 अक्टूबर को तय की।

अदालत ने लद्दाख के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय हितों की रक्षा के लिए काम करने वाले संगठन एपेक्स बॉडी लेह द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। संगठन ने वांगचुक सहित लगभग 200 पदयात्रियों के साथ मार्च शुरू किया और लेह से नई दिल्ली तक पद यात्रा शुरू की।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए साथ ही एएसजी चेतन शर्मा और सीजीएससी अपूर्व कुरुप भी मौजूद थे।

दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व सरकारी वकील (सिविल) संतोष कुमार त्रिपाठी ने किया। याचिकाकर्ता संगठन की ओर से एडवोकेट राजीव मोहन पेश हुए।

एसजीआई तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि धरना और मार्च आयोजित करने की कोई तत्काल आवश्यकता नहीं है, इसलिए अधिकारियों को याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया जा सकता है।

दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने आदेश दिया:

“16 अक्टूबर तक जवाब दाखिल किए जाएं। 22 अक्टूबर को सूचीबद्ध करें।”

संगठन 05 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस आयुक्त द्वारा जारी पत्र से व्यथित है, जिसमें जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अनुरोध खारिज कर दिया गया।

याचिका में कहा गया कि इनकार करने से याचिकाकर्ता संगठन के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत भाषण और शांतिपूर्ण सभा करने के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।

इसमें कहा गया कि दिल्ली पुलिस शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने का अनुरोध अस्वीकार करने के लिए कोई वैध या उचित आधार प्रदान करने में विफल रही।

याचिका में लिखा,

“प्रस्तावित प्रदर्शन याचिकाकर्ता संगठन द्वारा महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को उजागर करने के उद्देश्य से असंतोष की एक शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति है। प्रस्तावित अनशन का उद्देश्य महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और अधिकारियों को शिकायतें संप्रेषित करना है। अनुमति देने से इनकार करके प्रतिवादी प्रभावी रूप से इस मौलिक अधिकार को दबा रहा है। याचिकाकर्ता की सार्वजनिक चर्चा में शामिल होने की क्षमता को सीमित कर रहा है, जो खुले अभिव्यक्ति के सिद्धांत को कमजोर करता है।

पीठ ने वांगचुक और अन्य की कथित हिरासत के खिलाफ तीन याचिकाओं का निपटारा किया था। यह तब हुआ, जब दिल्ली पुलिस ने अदालत को सूचित किया कि सोनम वांगचुक और उनके सहयोगियों को रिहा कर दिया गया।

वांगचुक पिछले महीने लेह में शुरू हुई दिल्ली चलो पदयात्रा नामक मार्च का नेतृत्व कर रहे थे। उन्हें 30 सितंबर की रात को लद्दाख के अन्य लोगों के साथ सिंघू बॉर्डर पर हिरासत में लिया गया था।

मार्च का आयोजन लेह एपेक्स बॉडी ने किया था। एलएबी, कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के साथ मिलकर लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर आंदोलन चला रहा है।

केस टाइटल: एपेक्स बॉडी लेह बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार और अन्य।

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