दिल्ली हाईकोर्ट ने IPL 2012 के लिए आयात किए गए ब्रॉडकास्ट डिवाइसेज पर कस्टम ड्यूटी रखी बरकरार, गलत घोषणा को 'जानबूझकर' की गई माना

Update: 2025-12-23 16:47 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में उस कस्टम ड्यूटी को बरकरार रखा है, जिसे कस्टम्स, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स सेटलमेंट कमीशन ने उस कंपनी पर लगाया था, जिसे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) द्वारा आईपीएल 2012 की कवरेज के लिए ब्रॉडकास्ट उपकरण और संबंधित सेवाएं प्रदान करने के लिए अधिकृत किया गया था।

जस्टिस प्रतीबा एम. सिंह और जस्टिस शैल जैन की खंडपीठ ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में, चूंकि आयात अस्थायी (temporary) प्रकृति का था और उपकरणों को पुनः निर्यात किया जाना था, इसलिए याचिकाकर्ता को ड्यूटी रिफंड का अधिकार मिल सकता था। लेकिन इस मामले में कंपनी द्वारा जानबूझकर गलत घोषणा (intentional misdeclaration) किए जाने के कारण सेटलमेंट कमीशन के आदेश में कोई खामी नहीं पाई गई।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता कंपनी ने दिसंबर 2012 से मार्च 2013 के बीच बड़ी मात्रा में ब्रॉडकास्टिंग उपकरण फ्री ट्रेड एंड वेयरहाउसिंग ज़ोन के माध्यम से भारत में आयात किए और इनके उद्देश्य को 'DEMO' घोषित किया। कस्टम विभाग के अनुसार, उपकरणों का वास्तविक उद्देश्य व्यावसायिक (commercial) था, न कि डेमो। इसी आधार पर कारण बताओ नोटिस जारी हुआ, जिसके बाद कंपनी सेटलमेंट कमीशन के पास पहुंची।

सेटलमेंट कमीशन ने यह स्पष्ट निष्कर्ष निकाला कि कस्टम ड्यूटी से बचने के लिए जानबूझकर गलत घोषणा की गई। परिणामस्वरूप, ₹9,73,78,685/- की कस्टम ड्यूटी तय की गई और कंपनी पर ₹2 करोड़ का कुल जुर्माना लगाया गया। साथ ही, कंपनी के निदेशकों पर ₹10-10 लाख का व्यक्तिगत जुर्माना भी लगाया गया।

हाईकोर्ट में दलीलें और निर्णय

हाईकोर्ट में कंपनी ने दलील दी कि उपकरणों को पुनः निर्यात किया जाना था, इसलिए ड्यूटी देय नहीं थी और 'DEMO' घोषित करना एक बोना फाइड गलती थी। वहीं कस्टम विभाग ने कहा कि कंपनी ड्यूटी देयता से अवगत थी और उससे बचने के लिए 'DEMO' का रास्ता अपनाया गया।

अदालत ने माना कि आयात अस्थायी था और उपकरण भारत में न तो बेचे गए और न ही निस्तारित। इसलिए यदि घोषणा सही होती, तो ड्यूटी ड्रॉबैक का लाभ मिल सकता था। हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि कंपनी ने गलत घोषणा कर लाभ हासिल करने का प्रयास किया।

इसी आधार पर कस्टम ड्यूटी को बरकरार रखा गया। हालांकि, अदालत ने कंपनी पर लगाए गए जुर्माने को घटाकर ₹50 लाख कर दिया और यह भी स्पष्ट किया कि निदेशकों पर लगाए गए व्यक्तिगत जुर्माने को रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि लाभ कंपनी ने चाहा था, निदेशकों ने व्यक्तिगत रूप से नहीं।

मामले का इस प्रकार निपटारा कर दिया गया।

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