दिल्ली हाइकोर्ट ने भारत में विदेशी लॉ फर्मों के प्रवेश की अनुमति देने वाले BCI के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2024-02-09 07:55 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट ने शुक्रवार को भारत में विदेशी लॉ फर्मों और वकीलों के प्रवेश की अनुमति देने वाली बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा पिछले साल जारी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।

एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने BCI और केंद्र सरकार से जवाब मांगते हुए मामले को अप्रैल में अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

यह याचिका बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (BCD) में नामांकित विभिन्न वकीलों, नरेंद्र शर्मा, अरविंद कुमार बाजपेयी, सिद्धार्थ श्रीवास्तव, एकता मेहता, अरविंद कुमार, संजीव सरीन, हरीश कुमार शर्मा और दीपक शर्मा द्वारा दायर की गई।

यह पिछले साल 10 मार्च को BCI द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती देता है, जिसमें कहा गया कि यह एडवोकेट एक्ट, 1961 (Advocates Act, 1961) और समय-समय पर संशोधित प्रावधानों के दायरे से बाहर है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर वकील राजेश टिक्कू ने कहा कि विवादित अधिसूचना बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम ए.के.बालाजी एवं अन्य (2015 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। इसमें यह माना गया कि विदेशी लॉ फर्म या विदेशी वकील भारत में मुकदमेबाजी या गैर-मुकदमेबाजी पक्ष में प्रैक्टिस नहीं कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि BCI के पास उन विदेशी वकीलों को प्रवेश की अनुमति देने की शक्ति नहीं है, जो एडवोकेट एक्ट के तहत वकील के रूप में नामांकित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि विवादित अधिसूचना क़ानून के दायरे में है।

टिक्कू ने कहा,

“यहां तक ​​कि जो वकील भारत के विभिन्न राज्यों में नामांकित हैं, उनमें से 30% गैर-मुकदमेबाजी क्षेत्र में हैं। इसे हम क्रीमी लेयर कहते हैं वे बड़े सहयोग, विदेशी उद्यम और मध्यस्थता में हैं। आप नियमों के तहत अपने आप से [एक अलग वर्ग] नहीं बना सकते। आप कानून में संशोधन करते हैं लेकिन नियमों की आड़ में आप ऐसा नहीं कर सकते। कानून में सब कुछ निर्धारित है, यह कैसे किया जाना है।”

दूसरी ओर, BCI के वकील एडवोकेट प्रीत पाल सिंह ने लागू अधिसूचना के पीछे के उद्देश्य और तर्क का हवाला दिया।

सिंह ने कहा ''वे पूरी तरह से बेदाग नहीं होंगे।''

उन्होंने प्रस्तुत किया कि विदेशी वकील सीमित अधिकारों के साथ सीमित उद्देश्य के लिए भारत में प्रैक्टिस करने के लिए नामांकित हैं और उनकी नैतिकता पूरी तरह से BCI द्वारा शासित और नियंत्रित होगी।

याचिका में BCI और केंद्र सरकार को अधिसूचना को लागू करने और लागू करने से रोकने की मांग की गई। साथ ही किसी भी रजिस्टर्ड विदेशी लॉ फर्म या वकील को भारत में कार्यालय खोलने और प्रैक्टिस करने की अनुमति देने की मांग की गई।

याचिकाकर्ताओं का मामला है कि BCI के पास एडवोकेट एक्ट के तहत कोई अधिकार नहीं है कि वह विदेशी वकीलों या लॉ फर्मों को भारत में प्रवेश करने की अनुमति दे और एक्ट की धारा 29, 30 और 33 के अर्थ के तहत उन्हें वकील के रूप में मान्यता दे।

याचिका में कहा गया कि विदेशी वकील और लॉ फर्म एडवोकेट एक्ट के तहत वकील के रूप में नामांकित होने के हकदार नहीं हैं, न ही उनका नाम राज्य बार काउंसिल द्वारा तैयार और बनाए गए वकीलों के रोल में शामिल किया जा सकता।

याचिका में कहा गया,

“एक्ट के तहत गैर-मुकदमा संबंधी मामलों में भी विदेशी वकीलों या विदेशी लॉ फर्मों के लिए कानून का प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं है। यह प्रस्तुत किया गया कि गैर-मुकदमा संबंधी मामलों के संचालन के लिए विदेशी वकीलों या विदेशी लॉ फर्मों को प्रवेश की अनुमति देना पूरी तरह से अवैध है और एक्ट के प्रावधानों के साथ-साथ ए.के.बालाजी (सुप्रा) मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी विपरीत है।”

केस टाइटल- नरेंद्र शर्मा और अन्य बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य।

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