दिल्ली हाईकोर्ट ने हत्या और UAPA मामलों में ब्रिटिश नागरिक को जमानत देने से किया इनकार
दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जांचे जा रहे सात हत्या और UAPA मामलों में ब्रिटिश नागरिक जगतार सिंह जोहल को जमानत देने से इनकार किया।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने पंजाब के लुधियाना और जालंधर जिलों में 2016-2017 के दौरान लक्षित हत्याओं की श्रृंखला का आरोप लगाते हुए UAPA मामलों में जोहल द्वारा दायर जमानत अपील खारिज की।
NIA का मामला यह था कि जोहल और अन्य आरोपियों की संलिप्तता वाली घटनाएं विशेष रूप से पंजाब में कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा करने के लिए थीं। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि आरोपी व्यक्ति खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (KLF) द्वारा रची गई साजिश का हिस्सा थे, जिसका जोहल भी सदस्य है।
जोहल को जमानत देने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि यह मानने के आधार हैं कि उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सत्य हैं।
न्यायालय ने कहा,
“अधिनियम की धारा 43डी(5) की प्रकृति, साक्ष्य और गवाहों के बयानों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय का मत है कि रिहा होने पर अपीलकर्ता द्वारा गवाहों को धमकाने की बहुत अधिक संभावना है। अपीलकर्ता द्वारा फिर से KLF की गतिविधियों में भाग लेने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।”
यह भी कहा गया कि जोहल निर्दोष व्यक्ति नहीं है, बल्कि प्रथम दृष्टया KLF से जुड़ा हुआ था, जबकि उसके खिलाफ IPC और UAPA के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोप तय किए गए।
पीठ ने आगे कहा कि संविधान के अनुसार त्वरित सुनवाई आवश्यक है लेकिन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों और वह भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद से जुड़े मामलों में लंबी कैद के कारण जमानत पर छूट नहीं मिलनी चाहिए, जब तथ्य ऐसी गतिविधियों में संलिप्तता दिखाते हैं।
उन्होंने कहा,
“आतंकवादी या गैरकानूनी संगठनों से जुड़े व्यक्तियों के मामले में जिनकी गतिविधियां विभिन्न देशों में फैली हुई हैं, ऐसे गंभीर अपराधों में जमानत देने पर विचार कानून (UAPA) में निर्धारित अनुसार अधिनियम की धारा 43डी(5) में निहित मानदंडों के आधार पर सख्ती से किया जाना चाहिए।”
अदालत ने कहा कि आतंकवाद के कृत्य और प्रतिबंधित संगठनों से जुड़ाव, जिनका अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है, को अपराधों की अलग और अधिक गंभीर श्रेणी के रूप में माना जाना चाहिए।
अदालत ने कहा,
“UAPA के तहत आने वाले सभी अपराधों को एक ही नजर से नहीं देखा जा सकता। जमानत देने के उद्देश्य से भी ऐसे अपराधों की जांच केवल विशेष एफआईआर के तथ्यों के आधार पर नहीं की जानी चाहिए बल्कि किसी विशेष आरोपी के खिलाफ मौजूद कई एफआईआर की समग्र योजना में बड़े कैनवास पर जांच की जानी चाहिए।”
इसमें यह भी कहा गया,
"जमानत देने के उद्देश्य से जानमाल की क्षति और ऐसे हमलों के पीछे की मंशा यानी कानून और व्यवस्था की स्थिति को अस्थिर करने के साथ-साथ भारत में या भारत से बाहर लोगों के मन में आतंक पैदा करने पर विचार किया जाना चाहिए।"
केस टाइटल– जगतार सिंह जोहल @ जग्गी बनाम एनआईए और अन्य संबंधित मामले