सहमति से वयस्क रिश्ते में रह सकते हैं, भले ही उनमें से कोई एक विवाहित हो: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दो सहमति से वयस्कों के बीच के रिश्ते को, भले ही उनमें से एक विवाहित हो, अदालतें पुराने नज़रिए से नहीं देख सकतीं। साथ ही जज ऐसे व्यक्तियों पर अपनी व्यक्तिगत नैतिकता नहीं थोप सकते।
जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने कहा,
"यदि दो वयस्क, भले ही उनमें से एक विवाहित हो, साथ रहने या यौन संबंध बनाने का फैसला करते हैं तो उन्हें ऐसे फैसले के परिणामों की ज़िम्मेदारी भी लेनी चाहिए। जज अपने सामने आने वाले पक्षों पर अपनी व्यक्तिगत नैतिकता नहीं थोप सकते। साथ ही अदालतें इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकतीं कि कैसे शिक्षित वयस्क अब रिश्तों को उस नज़रिए से देखते हैं, जो पहले स्वीकार्य नहीं था।"
अदालत ने कहा कि न्याय प्रणाली को ऐसे मामलों को उसी नज़रिए से देखना चाहिए - निर्णयात्मक नहीं, बल्कि वयस्कों के निर्णयों से उत्पन्न होने वाली ज़िम्मेदारी को स्वीकार करते हुए।
अदालत ने कहा कि जब एक शिक्षित महिला यह जानते हुए भी कि वह विवाहित है, किसी पुरुष के साथ संबंध जारी रखने का निर्णय लेती है तो वह उस निर्णय की ज़िम्मेदारी भी स्वयं लेती है।
अदालत ने आगे कहा कि ऐसी महिला को इस संभावना को समझना चाहिए कि यह संबंध विवाह में परिणत नहीं हो सकता, या अंततः खराब हो सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि कानून को हमेशा उस संबंध के लिए उपाय के रूप में नहीं देखा जा सकता, जो विफल हो गया हो, जहां वह अन्यथा सहमति से बना हो।
अदालत ने कहा,
"जब कोई महिला स्वेच्छा से ऐसे संबंध में प्रवेश करती है तो उसे इसके संभावित परिणामों को भी स्वीकार करना होगा।"
जस्टिस शर्मा ने कहा कि कानून स्थिर नहीं रह सकता। उसे समाज के बदलते मानदंडों के साथ आगे बढ़ना और प्रगति करनी होती है। जैसे-जैसे समाज और समुदाय विकसित होते हैं, कानून को भी आगे बढ़ना चाहिए।
अदालत ने कहा,
"यह पहले से ही आगे बढ़ चुके समाज से पीछे नहीं रह सकता या उस पर पुरानी मंशा लागू नहीं कर सकता। जहां वाणिज्यिक या संविदात्मक विवादों से संबंधित मामलों का निर्णय अनिवार्य रूप से स्थापित कानूनी सिद्धांतों के आधार पर होता है, जो प्रासंगिक बने रहते हैं, वहीं मानवीय संबंधों से जुड़े मामले थोड़े अलग स्तर पर होते हैं। उन्हें मानवीय संबंधों में आए बदलावों के आलोक में देखा जाना चाहिए। उन्हें किसी कठोर या पुराने दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता। जज भी इस बदलते समाज का हिस्सा हैं। न्याय प्रणाली इन वास्तविकताओं से अलग नहीं रह सकती।"
जस्टिस शर्मा ने 2020 में पेशे से पायलट व्यक्ति के खिलाफ दर्ज बलात्कार का मामला खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। एयरलाइन में केबिन क्रू के रूप में कार्यरत शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया कि वह एक उड़ान में आरोपी से मिली थी, जिसके बाद उसने कंपनी निर्देशिका से उसका नंबर प्राप्त करने के बाद व्हाट्सएप के माध्यम से उससे संपर्क किया।
उसने आरोप लगाया कि एक होटल में हुई मुलाकात में आरोपी ने उसे कोई नशीला पदार्थ दिया और उसके साथ बलात्कार किया। आरोप है कि इसके बाद भी उसने शादी का झूठा झांसा देकर और उसकी अंतरंग तस्वीरों व वीडियो का दुरुपयोग करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना जारी रखा।
उसका कहना है कि रिश्ते के दौरान उसे कई बार गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया गया।
FIR रद्द करने की याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि होटल में दोनों पक्षों के बीच शारीरिक संबंधों की पहली घटना के तुरंत बाद पीड़िता को पता चल गया था कि आरोपी विवाहित व्यक्ति है और वह उसके साथ विवाह नहीं कर सकता।
इसमें कहा गया कि इस जानकारी के बावजूद, पीड़िता ने उसके बाद दो साल से अधिक समय तक आरोपी के साथ अपने संबंध जारी रखे, इस अवधि के दौरान दोनों पक्षों ने नियमित रूप से शारीरिक और अंतरंग संबंध बनाए रखे।
अदालत ने कहा,
"इस जानकारी के बावजूद, उसने अगस्त 2020 तक याचिकाकर्ता के साथ स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाए रखे, जब अंततः रिश्ता टूट गया, जिसके परिणामस्वरूप सितंबर, 2020 में वर्तमान FIR दर्ज की गई।"
इसमें आगे कहा गया कि विचाराधीन घटना से पहले हुई बातचीत आपसी अंतरंगता को दर्शाती है। साथ ही यह भी दर्शाती है कि दोनों पक्षकारों के बीच संबंध शुरू से ही स्वैच्छिक और सहमति से थे।
अदालत ने कहा,
"जब शिक्षित वयस्कों द्वारा ऐसे निर्णय लिए जाते हैं तो उन निर्णयों की ज़िम्मेदारी भी स्वीकार की जानी चाहिए। रिश्ते में खटास आने के बाद किसी एक पक्ष को इसे यौन उत्पीड़न के अपराध के रूप में चित्रित करने की अनुमति नहीं है।"