लंबे समय तक सहमति से शारीरिक संबंध बनाने का मतलब यह नहीं कि सहमति केवल शादी करने के वादे पर आधारित थी: दिल्ली हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले में दोषसिद्धि खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि सहमति से शारीरिक संबंध लंबे समय तक जारी रहता है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि महिला की सहमति केवल शादी करने के वादे पर आधारित थी।
जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि शादी का झूठा झांसा देकर बलात्कार के अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए इस बात के पुख्ता और स्पष्ट सबूत होने चाहिए कि शारीरिक संबंध केवल शादी करने के वादे के आधार पर बनाए गए थे जिसे कभी पूरा करने का इरादा नहीं था।
कोर्ट ने बलात्कार के मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि और सजा का आदेश खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
उसे भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 366 और 376 के तहत दोषी ठहराया गया और उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
महिला के पिता ने FIR दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी 20 वर्षीय बेटी लापता है और वह लगभग 18 साल के अपीलकर्ता के साथ चली गई। वे दोनों हरियाणा में पाए गए और अपीलकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया।
अपीलकर्ता का कहना था कि यह प्रेम और स्नेह पर आधारित सहमति से शारीरिक संबंध का मामला था और इसमें कोई आपराधिकता शामिल नहीं थी।
दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने दोषसिद्धि आदेश का समर्थन किया और कहा कि अभियोक्ता की गवाही स्पष्ट थी और ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों का सही मूल्यांकन किया।
जस्टिस सिंह ने फैसला सुनाया कि यदि शादी करने का वादा किया गया और उक्त वादा बुरे इरादे से किया गया। महिला इस वादे के बहाने यौन क्रिया में शामिल होने के लिए अपनी सहमति देती है तो सहमति वैध सहमति नहीं होगी और बलात्कार के अपराध की कठोरता को आकर्षित करेगी।
न्यायालय ने कहा,
"विवाह करने के वादे के उल्लंघन के मामलों में यदि उक्त वादा सद्भावनापूर्वक किया गया लेकिन बाद में कुछ अप्रत्याशित परिस्थितियों या नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण उक्त वादा पूरा नहीं किया जा सका तो इसे विवाह करने का झूठा वादा नहीं कहा जा सकता और धारा 376 के तहत अपराध के लिए किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने का कारण नहीं बनाया जा सकता।"
उन्होंने आगे कहा,
"यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि सहमति से शारीरिक संबंध पर्याप्त/लंबी/विस्तारित अवधि तक जारी रहता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि सहमति पूरी तरह से विवाह करने के वादे पर आधारित थी।"
इसने महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024) का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय तक सहमति से संबंध खराब होने के बाद विवाह के झूठे बहाने पर बलात्कार के आरोपों पर पुरुषों के खिलाफ आपराधिक कानून लागू करने की चिंताजनक प्रवृत्ति के बारे में चिंता व्यक्त की।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोक्ता और अपीलकर्ता एक-दूसरे से प्यार करते थे। उसने विवाह के लिए अपनी सहमति दी और बाद में उन्होंने शारीरिक संबंध बनाए।
इसमें यह भी कहा गया कि अभियोजन पक्ष द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य नहीं पेश किया गया, जिससे पता चले कि अपीलकर्ता का अभियोक्ता से विवाह करने का इरादा नहीं था या उसने विवाह करने से इनकार कर दिया था।
अदालत ने कहा,
"किसी भी कारण से अपीलकर्ता और अभियोक्ता के बीच विवाह नहीं हो सका लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि विवाह करने के झूठे वादे के कारण शारीरिक संबंध स्थापित किए गए थे।"
अपीलकर्ता की रिहाई का आदेश देते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करेगा कि न तो वह और न ही उसके परिवार का कोई व्यक्ति अभियोक्ता या उसके परिवार के किसी सदस्य के जीवन में हस्तक्षेप करेगा या किसी भी माध्यम से उससे संपर्क नहीं करेगा, चाहे वह व्हाट्सएप हो मोबाइल हो या कोई भी तरीका हो।
केस टाइटल: शिवम पांडे बनाम राज्य