भविष्य में अनुसूचित अपराध करने के लिए अवैध तरीके से धन एकत्र करना PMLA के तहत 'मनी लॉन्ड्रिंग' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-12-04 09:05 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार (4 दिसंबर) को कहा कि भविष्य में अनुसूचित अपराध करने के लिए अवैध तरीके से धन एकत्र करना धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत धन शोधन का अपराध नहीं है।

ऐसा करते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि 'अपराध की आय' कथित आपराधिक गतिविधि के परिणामस्वरूप उत्पन्न होनी चाहिए।

जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा,

"इस तरह से एकत्र की गई धनराशि अपराध की आय नहीं है। यह तभी अपराध की आय हो सकती है, जब यह अनुसूचित अपराध के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई हो।"

न्यायालय ने कहा कि धन एकत्र करके किया गया अपराध अनुसूचित अपराध सहित किसी भी कानून के तहत अपराध हो सकता है, लेकिन PMLA की धारा 3 को लागू करने के लिए इसे 'अपराध की आय' नहीं कहा जा सकता।

"अपराध की आय आपराधिक गतिविधि (अनुसूचित अपराध) के परिणामस्वरूप उत्पन्न होनी चाहिए। भविष्य में अनुसूचित अपराध करने के लिए अवैध तरीके से धन एकत्र करना PMLA के तहत मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध नहीं है।''

न्यायालय ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तीन आरोपियों- परवेज अहमद, अब्दुल मुकीत और मोहम्मद इलियास को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आरोप लगाया कि आरोपी PFI के सदस्य या पदाधिकारी होने के नाते, संगठन के लिए और उसकी ओर से अज्ञात स्रोतों से धन एकत्र करते थे, फर्जी रसीदें प्रदान करते थे और संग्रह को वैध दान के रूप में दिखाते थे, जिससे उन निधियों का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों (अनुसूचित अपराध) को अंजाम देने के लिए किया जा सके।

जमानत याचिकाओं को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि ED द्वारा स्थापित मामला कि आरोपी व्यक्ति जो धन एकत्र कर रहे थे, उसका उपयोग अनुसूचित अपराध करने के लिए किया गया, इसलिए अपराध की आय PMLA की योजना नहीं है।

मामले में ED के केस पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

"शिकायत को देखने पर यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि कोई अनुसूचित अपराध किया गया, यह कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली में सीएए विरोधी प्रदर्शनों में भाग लिया, जिसकी परिणति दिल्ली दंगों में हुई। याचिकाकर्ताओं के विद्वान वकीलों ने सही ढंग से बताया कि वर्तमान मामले में यानी धन का संग्रह अपराध यानी दिल्ली दंगों से पहले हुआ। अपराध की आय आपराधिक गतिविधि (अनुसूचित अपराध) के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई। भविष्य में किसी अनुसूचित अपराध को अंजाम देने के लिए अवैध तरीके से धन एकत्र करना PMLA के तहत मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध नहीं है। ED द्वारा स्थापित मामला घोड़े के आगे गाड़ी लगाने जैसा है।

इसमें यह भी कहा गया कि तर्क के लिए यह मान भी लें कि आरोपियों ने अपराध की आय अर्जित की, तब भी, "प्रथम दृष्टया" उनका कथित अपराध की आय पर नियंत्रण नहीं था।

न्यायालय ने कहा,

"वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं की भूमिका यह है कि उन्होंने धन एकत्र किया और उसे अकाउंटेंट या PFI के अकाउंट में जमा कर दिया। इसलिए इस परिदृश्य में प्रथम दृष्टया, कथित अपराध की आय के सृजन पर प्रभुत्व और नियंत्रण याचिकाकर्ताओं का नहीं है।"

यह देखते हुए कि आरोपियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध नहीं बनता, जस्टिस सिंह ने कहा कि विशेष कानूनों में जमानत देने के लिए कठोर शर्तें हैं, लेकिन उन्हें आरोपियों को हिरासत में लेने का साधन नहीं बनना चाहिए, बिना मुकदमे को शीघ्रता से समाप्त करने की कोई संभावना के।

न्यायालय ने कहा,

"केवल इन विशेष कानूनों के प्रावधानों के तहत किसी आरोपी पर आरोप लगाना ही अपने आप में दंड नहीं बन जाना चाहिए, जो अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है। उपरोक्त निर्णय का अवलोकन यह भी दर्शाता है कि अनुच्छेद 21 PMLA की धारा 45 की कठोर शर्तों पर हावी है। यदि आरोपी को मुकदमे के समापन की कोई उचित संभावना के बिना काफी लंबे समय तक कैद में रखा गया है, तो अनुच्छेद 21 को प्राथमिकता दी जाएगी।"

केस टाइटल: परवेज अहमद बनाम ईडी और अन्य संबंधित मामले

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