कैश फॉर क्वेरी मामला: दिल्ली हाईकोर्ट से महुआ मोइत्रा को राहत, CBI चार्जशीट के लिए लोकपाल की मंजूरी रद्द

Update: 2025-12-19 07:44 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस (TMC) की नेता और सांसद महुआ मोइत्रा को बड़ी राहत देते हुए कैश फॉर क्वेरी विवाद से जुड़े मामले में लोकपाल द्वारा CBI को चार्जशीट दाखिल करने की मंजूरी देने का आदेश रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने लोकपाल के आदेश को कानून के प्रावधानों के विपरीत करार देते हुए कहा कि लोकपाल ने लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के प्रावधानों को सही ढंग से नहीं समझा।

जस्टिस अनिल क्षेतरपाल और जस्टिस हरिश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने यह आदेश पारित करते हुए लोकपाल से कहा कि वह मंजूरी के प्रश्न पर कानून के अनुरूप पुनर्विचार करे और एक माह के भीतर इस पहलू पर नया निर्णय ले।

महुआ मोइत्रा की ओर से सीनियर एडवोकेट निधेश गुप्ता ने दलील दी कि लोकपाल द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं। यह लोकपाल अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप नहीं है। उन्होंने विशेष रूप से अधिनियम की धारा 20(7) का हवाला देते हुए कहा कि इसमें स्पष्ट रूप से यह प्रावधान है कि अभियोजन की मंजूरी देने से पहले संबंधित लोक सेवक की टिप्पणियां ली जानी चाहिए। गुप्ता के अनुसार लोकपाल ने यह कहते हुए कि वह किसी भी सामग्री पर विचार नहीं करेगा सीधे मंजूरी दे दी, जो कानून के प्रावधानों के विपरीत है।

महुआ मोइत्रा की ओर से एडवोकेट समुद्र सारंगी भी पेश हुए।

वहीं CBI की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने तर्क दिया कि अभियोजन की मंजूरी से पहले आरोपी को मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं होता। उन्होंने कहा कि कानून की स्थापित स्थिति यह है कि आरोपी केवल लिखित टिप्पणियां दे सकता है। इसके बावजूद, लोकपाल ने महुआ मोइत्रा को मौखिक सुनवाई का अवसर दिया।

शिकायतकर्ता निशिकांत दुबे की ओर से सीनियर एडवोकेट जीवेश नागरथ ने दलील दी कि धारा 20 एक संपूर्ण प्रक्रिया निर्धारित करती है। अधिनियम के अनुसार आवश्यक टिप्पणियां लोकपाल के समक्ष रखी गईं।

दुबे की ओर से एडवोकेट ऋषि अवस्थी, अमित अवस्थी और पीयूष वत्स भी पेश हुए।

महुआ मोइत्रा ने 12 नवंबर को पारित लोकपाल के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि यह आदेश लोकपाल अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन करता है। उनका कहना था कि उनसे दलीलें और लिखित प्रस्तुतियां आमंत्रित की गईं, लेकिन अभियोजन की मंजूरी देते समय उन पर कोई विचार नहीं किया गया।

याचिका में यह भी कहा गया कि लोकपाल ने जांच रिपोर्ट पर बिना किसी स्वतंत्र मूल्यांकन के केवल “रबर स्टैम्प” की तरह काम किया और महुआ मोइत्रा के बचाव को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए चार्जशीट दाखिल करने की मंजूरी दे दी। इसके अलावा, लोकपाल ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल किए जाने की संभावना पर भी विचार किए बिना सीधे अभियोजन को हरी झंडी दे दी, जिससे उन्हें गंभीर पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ा।

गौरतलब है कि महुआ मोइत्रा पर आरोप है कि उन्होंने उद्योगपति और अपने मित्र दर्शन हीरानंदानी की ओर से संसद में सवाल पूछने के बदले नकद राशि ली। हालांकि, एक इंटरव्यू में उन्होंने यह स्वीकार किया कि उन्होंने संसद का लॉग-इन और पासवर्ड हीरानंदानी को दिया, लेकिन किसी भी तरह की नकद लेन-देन के आरोपों से इनकार किया।

यह विवाद तब सामने आया, जब निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को शिकायत भेजकर आरोप लगाया कि महुआ मोइत्रा ने संसद में सवाल पूछने के लिए कथित तौर पर रिश्वत ली। बाद में महुआ मोइत्रा ने दुबे, देहाद्राई और कई मीडिया संस्थानों को कानूनी नोटिस भेजकर सभी आरोपों का खंडन किया था।

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