वायु सेना खेल परिसर RTI Act के तहत 'सार्वजनिक प्राधिकरण' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वायु सेना खेल परिसर (AFSC) सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के तहत 'सार्वजनिक प्राधिकरण' नहीं है, क्योंकि सरकार AFSC पर महत्वपूर्ण नियंत्रण नहीं रखती। इसका संचालन सरकार से मिलने वाले वित्तपोषण पर निर्भर नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि:
जस्टिस संजीव नरूला की एकल न्यायाधीश पीठ केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के आदेश को AFSC की चुनौती पर विचार कर रही थी, जिसने इसे RTI Act के तहत 'सार्वजनिक प्राधिकरण' माना था।
भारतीय वायु सेना के रिटायर अधिकारी (प्रतिवादी) ने केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (CPIO), वायु सेना मुख्यालय के समक्ष RTI आवेदन दायर किया, जिसमें नई दिल्ली में AFSC, वायु सेना स्टेशन के अंतर्गत भूमि के कथित दुरुपयोग और वाणिज्यिक दोहन के बारे में जानकारी मांगी गई थी।
CPIO ने उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर जानकारी प्रदान की, यह कहा गया कि AFSC RTI Act के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है। इसलिए प्रावधान उस पर लागू नहीं होंगे।
प्रतिवादी ने प्रथम अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपील दायर की, जिसने उसके आवेदन को खारिज कर दिया। CIC के समक्ष दूसरी अपील में इसने माना कि AFSC RTI Act की धारा 2(एच) के तहत 'सार्वजनिक प्राधिकरण' के रूप में योग्य है। CPOI को प्रतिवादी द्वारा मांगी गई जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया।
अपने आदेश में CIC ने AFSC को मुख्य रूप से दो आधारों पर 'सार्वजनिक प्राधिकरण' माना। पहला, चूंकि AFSC सरकारी भूमि पर संचालित होता है। इसलिए यह सरकार द्वारा पर्याप्त वित्तपोषण का गठन करता है। दूसरा, चूंकि AFSC का प्रबंधन वायु सेना अधिकारियों की सेवा करता है, इसलिए यह महत्वपूर्ण सरकारी नियंत्रण को दर्शाता है।
सरकार का AFSC पर 'महत्वपूर्ण नियंत्रण' नहीं
न्यायालय ने RTI Act की धारा 2(एच) का उल्लेख किया, जो 'सार्वजनिक प्राधिकरण' को परिभाषित करता है।
न्यायालय ने यहां उल्लेख किया कि AFSC इस प्रावधान के खंड a से c के अंतर्गत नहीं आता है, क्योंकि यह संविधान, संसद, राज्य विधानमंडल या किसी सरकारी अधिसूचना द्वारा स्थापित निकाय नहीं है। इसलिए उसे यह निर्धारित करना था कि AFSC खंड d(I) या (ii) के अंतर्गत आता है या नहीं, जो सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित निकायों या महत्वपूर्ण सरकारी धन प्राप्त करने वाले गैर-सरकारी संगठनों से संबंधित है।
ऐसे निकायों के संबंध में न्यायालय ने कहा कि वे निकाय जो सीधे सरकार द्वारा स्थापित नहीं हो सकते हैं, लेकिन नियंत्रण या वित्तीय सहायता के माध्यम से सरकार द्वारा महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होते हैं, वे RTI अधिनियम के अंतर्गत आते हैं।
इस बात पर कि क्या सरकार AFSC पर व्यापक नियंत्रण रखती है, न्यायालय ने उल्लेख किया कि AFSC स्वायत्त इकाई है, जो अपने स्वयं के नियमों और उप-नियमों द्वारा शासित है। किसी विशिष्ट कानून द्वारा स्थापित नहीं की गई या सरकार के स्वामित्व में नहीं है।
न्यायालय ने थलप्पलम सर्विस कोऑपरेशन बैंक लिमिटेड बनाम केरल राज्य (2013) के सुप्रीम कोर्ट के मामले का उल्लेख किया, जहां यह माना गया कि किसी निकाय पर सरकार का नियंत्रण केवल नियामक या पर्यवेक्षी निरीक्षण से परे होना चाहिए। यह कहा गया कि किसी प्रशासनिक निकाय में केवल सरकारी अधिकारियों का होना ही स्वतः ही पर्याप्त नियंत्रण में तब्दील नहीं हो जाता, खासकर तब जब वे निकाय के प्रमुख संचालन को प्रभावित नहीं करते।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की,
“इस प्रकार, वायुसेना अधिकारियों की मात्र उपस्थिति थलप्पलम में निर्धारित कठोर मानदंड को पूरा नहीं करती, जिसके अनुसार 'पर्याप्त नियंत्रण' क्या होता है। यह तथ्य कि सरकारी अधिकारी मनोरंजन के उद्देश्य से क्लब बनाने के लिए एक साथ आ सकते हैं, स्वचालित रूप से ऐसी इकाई को सार्वजनिक प्राधिकरण में नहीं बदल देता। यह निजी क्लब बना रहता है, जो सरकारी कार्य या नियंत्रण से अलग होता है। पर्याप्त सरकारी वित्तपोषण या क्लब के संचालन पर प्रत्यक्ष, व्यापक नियंत्रण के बिना, केवल सरकारी अधिकारियों की भागीदारी, इसके मौलिक रूप से निजी चरित्र को नहीं बदलती है।”
न्यायालय ने कहा कि अधिकारी अपनी प्राथमिक ड्यूटी से संबंधित भूमिकाओं में काम करते हैं। AFSC के दैनिक निर्णय लेने को सक्रिय रूप से प्रभावित नहीं करते हैं। न्यायालय का मानना है कि यह व्यवस्था संगठनात्मक सुविधा के लिए है, न कि वास्तविक नियंत्रण के प्रदर्शन के लिए।
इस प्रकार न्यायालय ने पाया कि AFSC सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र रूप से काम करता है। AFSC के संचालन को सरकार द्वारा 'पर्याप्त रूप से वित्तपोषित' नहीं किया जाता। इस पर न्यायालय ने कहा कि क्या सरकार द्वारा AFSC को पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किया जाता है, न्यायालय ने कहा कि सरकार द्वारा सब्सिडी दिए जाने मात्र से ही पर्याप्त वित्तपोषण नहीं हो जाता, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि इसके बिना निकाय का अस्तित्व बना रहेगा। न्यायालय ने कहा कि बिना किसी दस्तावेज के भूमि का प्रावधान करने मात्र से ही पर्याप्त वित्तपोषण नहीं हो जाता।
न्यायालय ने कहा,
"औपचारिक आवंटन दस्तावेज या भुगतान की अनुपस्थिति अपने आप में यह साबित नहीं करती कि AFSC को सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किया जाता है। प्रतिवादी के तर्क को बनाए रखने के लिए उन्हें यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता होगी कि AFSC का संचालन इस सरकारी भूमि के उपयोग पर इतना निर्भर है कि इसके बिना इसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।”
न्यायालय ने पाया कि अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए भूमि का उपयोग आकस्मिक है। AFSC का संचालन इस हद तक भूमि पर निर्भर नहीं है कि इसका अस्तित्व सरकारी सहायता पर निर्भर है।
इसने कहा कि AFSC अपनी भूमि और बुनियादी ढांचे के रखरखाव के लिए अपने सदस्यों से योगदान और सदस्यता लेता है। इसने इस प्रकार कहा कि यह सरकारी संसाधनों पर निर्भरता के बजाय वित्तीय स्वतंत्रता को दर्शाता है। सरकारी भूमि पर कब्जा करना अपने आप में वित्तीय निर्भरता को नहीं दर्शाता।
“पर्याप्त वित्तपोषण के लिए इकाई के कामकाज के लिए महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष, सक्रिय वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है। जबकि भूमि परिसंपत्ति के रूप में काम कर सकती है, इसका अकेले उपयोग RTI Act द्वारा परिकल्पित व्यापक वित्तीय निर्भरता का गठन नहीं करता है, विशेष रूप से इस तथ्य के प्रकाश में कि AFSC न तो सरकार के स्वामित्व में है और न ही सरकार द्वारा बनाई गई और न ही यह कोई सार्वजनिक कार्य या सार्वजनिक कर्तव्य पूरा करती है।”
इस प्रकार न्यायालय ने माना कि AFSC RTI Act की धारा 2(एच) के तहत 'सार्वजनिक प्राधिकरण' के रूप में योग्य नहीं है। उसने CIC का आदेश रद्द कर दिया।