दिल्ली हाईकोर्ट ने रोस्टर बेंच को आधार प्रस्तुत किए बिना सरकारी जीवन बीमा लाभ के लिए वकील की याचिका पर सुनवाई करने का निर्देश दिया

Update: 2024-09-11 08:17 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि मुख्यमंत्री एडवोकेट कल्याण योजना के तहत रजिस्ट्रेशन के उद्देश्य से आधार नंबर को अनिवार्य आवश्यकता के रूप में हटाने की मांग करने वाले वकील द्वारा दायर रिट याचिका में कोई जनहित शामिल नहीं है।

एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि बायोमेट्रिक्स न देना या आधार कार्ड का उपयोग न करना याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत पसंद है। इसलिए मामला खंडपीठ के समक्ष नहीं आएगा। उन्होंने एकल न्यायाधीश की रोस्टर पीठ को 3 अक्टूबर को मामले की सुनवाई करने का निर्देश दिया।

मुख्यमंत्री ने वकीलों के लिए समूह (अवधि) बीमा की घोषणा की थी, जिसमें प्रति वकील 10,00,000 रुपये का जीवन बीमा कवर प्रदान किया गया था। साथ ही वकीलों उनके जीवनसाथी और 25 वर्ष की आयु तक के दो आश्रित बच्चों के लिए समूह मेडी-क्लेम कवरेज की भी घोषणा की, जिसमें 5,00,000 रुपये की फैमिली फ्लोटर बीमा राशि शामिल है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करने के लिए वकीलों को पहले अपना आधार नंबर प्रदान करना आवश्यक है।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वकीलों के पास पहले से ही बार कार्ड, चुनाव कार्ड और प्रैक्टिस का प्रमाण पत्र है। इस प्रकार आधार कार्ड को अनिवार्य करके अनावश्यकता की एक और परत जोड़ना उचित नहीं है

उन्होंने प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि आधार कार्ड को लिंक करना आनुपातिकता की परीक्षा से गुजरना चाहिए। उदाहरण के लिए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आधार कार्ड को पैन कार्ड से जोड़ना उचित है लेकिन आधार कार्ड को बैंक अकाउंट या सिम कार्ड से जोड़ना असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि यहां तक ​​कि स्कूल में दाखिले के लिए बच्चे का आधार कार्ड उपलब्ध कराना भी असंवैधानिक माना गया।

इस मोड़ पर जस्टिस गेडेला ने मौखिक रूप से पूछा,

"इसमें जनहित क्या है? आपके पास अपने कारण हो सकते हैं कि आप बायोमेट्रिक्स नहीं देना चाहते यह व्यक्तिगत धारणा है, हो सकता है कि आपको आधार न चाहिए यह व्यक्तिगत हित है, नहीं सार्वजनिक नहीं।"

एसी जस्टिस मनमोहन ने भी सहमति व्यक्त की कि मामले की सुनवाई खंडपीठ द्वारा नहीं की जा सकती, क्योंकि इसमें कोई जनहित शामिल नहीं है।

तदनुसार, मामले को एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया जाता है।

केस टाइटल- गौरव जैन बनाम जीएनसीटीडी

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