छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गैर-हाजिर रहे तकनीशियन की बर्खास्तगी को सही ठहराया, कहा- सजा देना प्रबंधन का विशेषाधिकार

Update: 2025-07-03 10:07 GMT

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भिलाई स्टील प्लांट के पूर्व तकनीशियन की सेवा में पुनर्स्थापना की याचिका खारिज करते हुए कहा कि अनुशासनात्मक मामलों में सजा देना प्रबंधन का प्रबंधकीय कार्य है। इसके साथ ही कोर्ट कहा कि तब तक अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जब तक कि सजा प्रथम दृष्टया अत्यंत कठोर या न्याय की अंतरात्मा को झकझोरने वाली न लगे।

यह फैसला जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने दिया और माना कि 140 दिनों तक बिना अनुमति ड्यूटी से अनुपस्थित रहने पर सेवा से बर्खास्तगी एक उचित और अनुपातिक दंड है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता 01.05.1994 से 17.09.1994 तक प्रबंधन से बिना अवकाश स्वीकृत कराए लगातार 140 दिनों तक सेवा से अनुपस्थित रहा। इससे पहले भी वह कई बार ड्यूटी से गायब रहा और उसे तीन बार दंडित किया गया। महज आठ वर्षों की सेवा अवधि में वह कई बार अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना कर चुका था। इसी आधार पर विभागीय जांच के बाद 18.08.1995 को उसे बर्खास्त कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने लेबर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि सजा अनुचित रूप से कठोर है। विभागीय जांच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। लेबर कोर्ट ने जहां जांच को खारिज किया, वहीं बर्खास्तगी को सही ठहराया।

औद्योगिक न्यायालय ने भी बर्खास्तगी को उचित माना और यह भी कहा कि याचिका देरी से दायर की गई थी। इसके बाद याचिकाकर्ता हाईकोर्ट पहुंचा और कहा कि उसकी याचिका समयबद्ध थी क्योंकि उसने पहले प्रबंधन के समक्ष अपील दायर की थी, जो लंबित थी।

हाईकोर्ट ने कहा कि लेबर कोर्ट और औद्योगिक न्यायालय ने याचिका को विलंबित मानने में गलती की। लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बार-बार बिना अनुमति के गैरहाजिर रहा और उस पर पहले भी अनुशासनात्मक कार्रवाई हो चुकी थी, जिससे यह स्पष्ट है कि वह ड्यूटी से गायब रहने का आदी था। ऐसे में सेवा से हटाने की सजा उसके दुष्कर्म के अनुरूप है। इसमें कोई गैरकानूनीता नहीं है।

अतः अदालत ने याचिका खारिज कर दी और सेवा से बर्खास्तगी आदेश बरकरार रखा।

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