व्यभिचार के आधार पर तलाकशुदा पत्नी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी महिला को उसके पति द्वारा साबित किए गए व्यभिचार (Adultery) के आधार पर तलाक दिया गया है तो वह आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती।
इस संबंध में जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा ने अपने आदेश में कहा,
CrPC की धारा 125 की उपधारा (4) यह प्रावधान करती है कि यदि कोई महिला, जिसकी शादी अभी भी कायम है, व्यभिचारपूर्ण जीवन जी रही हो तो उसे अपने पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार नहीं है। अब यदि पति को व्यभिचार का प्रमाणित आधार मानकर तलाक दे दिया गया हो तो क्या यह कहा जा सकता है कि यह अयोग्यता तलाक के आदेश के बाद समाप्त हो जाती है? इस प्रश्न का विवेकपूर्ण उत्तर स्पष्ट रूप से 'नहीं' है। यदि पत्नी व्यभिचारपूर्ण जीवन जीने के आधार पर तलाकशुदा हो चुकी है तो वह यह दावा नहीं कर सकती कि अब वह भरण-पोषण की हकदार बन गई है। अतः मैं यह निष्कर्ष निकालता हूँ कि व्यभिचारपूर्ण जीवन जीने वाली तलाकशुदा पत्नी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग करने के लिए अयोग्य होती है।”
मामले के तथ्य
यह मामला एक पति द्वारा फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने से जुड़ा था, जिसमें उसे अपनी तलाकशुदा पत्नी को प्रति माह 4000 का भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया। वहीं पत्नी ने भी इस आदेश को चुनौती दी थी और 20,000 प्रतिमाह की मांग की थी।
पत्नी ने आरोप लगाया कि उसे मानसिक प्रताड़ना और चरित्र हनन का सामना करना पड़ा, जिस कारण वह ससुराल छोड़कर मायके में रहने लगी। इसके बाद उसने CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की अर्जी लगाई।
पति ने जवाब में कहा कि शादी के कुछ महीनों बाद ही पत्नी का व्यवहार बदल गया। वह झगड़े करती थी और उसका उसके छोटे भाई के साथ अवैध संबंध था। उसने यह भी कहा कि पत्नी ने झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दी थी। फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों के आधार पर 4000 भरण-पोषण तय किया।
पति ने हाईकोर्ट में यह भी कहा कि वह संविदा कर्मचारी है और 17,131 मासिक कमाता है। उसने यह भी तर्क दिया कि पत्नी का व्यभिचार कोर्ट में सिद्ध हो चुका है। उसी आधार पर उसे 8 सितंबर, 2023 को तलाक मिला था। ऐसे में CrPC की धारा 125(4) के अनुसार, पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार नहीं रह जाता।
वहीं पत्नी ने तर्क दिया कि Living in Adultery यानी व्यभिचारपूर्ण जीवन का मतलब निरंतर अवैध संबंध होता है, जो इस मामले में साबित नहीं हुआ, क्योंकि वह 1 मार्च 2021 के बाद से अपने भाई और भाभी के साथ रह रही है।
अंतिम निर्णय:
हाईकोर्ट ने यह माना कि पति को व्यभिचार के आधार पर तलाक मिल चुका है। यह तथ्य पर्याप्त रूप से साबित है। यह तथ्य इस बात का प्रमाण है कि पत्नी व्यभिचारपूर्ण जीवन जी रही थी, जिससे उसे भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार नहीं है।
न्यायालय ने कहा,
"एक बार जब व्यभिचार के आधार पर तलाक मिल चुका है तो यह निर्णय इस मामले में व्यभिचार के प्रश्न को तय करने के लिए प्रासंगिक है। यह डिक्री पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर दी गई और इसे चुनौती नहीं दी गई।"
इसी आधार पर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और पत्नी की भरण-पोषण की याचिका खारिज करते हुए पति की याचिका को मंजूरी दी।