गरीबों पर डंडा, अमीरों पर रहम: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पुलिस कार्रवाई पर उठाए सवाल
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक बार फिर सड़कों पर हो रहे हुड़दंग और लापरवाह ड्राइविंग की घटनाओं पर कड़ा रुख अपनाया। अदालत ने दो हिंदी दैनिकों में प्रकाशित रिपोर्टों पर स्वतः संज्ञान लिया, जिनमें बताया गया कि कुछ युवक जन्मदिन मनाने फार्महाउस जाते समय गाड़ियों को लापरवाही से चला रहे थे, स्टंट कर रहे थे और खिड़कियों व सनरूफ से लटककर अन्य राहगीरों की जान को खतरे में डाल रहे थे।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने इस पर कड़ी नाराज़गी जताई और कहा कि पुलिस गरीबों, मध्यम वर्ग और वंचितों पर तो सख्ती दिखाती है। हालांकि, जब मामला रसूखदारों, धनबल या राजनीतिक ताकत वाले लोगों का होता है तो वह बिना दाँत का शेर बन जाती है। अदालत ने टिप्पणी की कि ऐसे लोगों को मामूली जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है और उनकी गाड़ियां भी वापस कर दी जाती हैं।
न्यायालय ने यह भी कहा कि यह समझना मुश्किल है कि आखिर पुलिस अधिकारियों को क्या रोकता है कि वे भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) या अन्य कठोर कानूनों के तहत ऐसे अपराधियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं करते जबकि वे दूसरों की जान को खतरे में डालते हैं। अदालत ने इसे महज़ आंखों में धूल झोंकने जैसी कार्रवाई बताया और कहा कि पुलिस की कार्रवाई ऐसी होनी चाहिए कि अपराधियों को जीवनभर सबक मिले।
मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि कुछ राहगीरों ने इस घटना का वीडियो बनाकर पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद 18 गाड़ियां जब्त की गईं और मोटर वाहन अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज किया गया। साथ ही संबंधित चालकों के ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश भी की गई।
अदालत ने कड़ा रुख अपनाते हुए आदेश दिया कि मासतुरी पुलिस द्वारा जब्त की गई 18 गाड़ियां बिना अदालत की अनुमति के जारी नहीं की जाएंगी। इसके अलावा, मुख्य सचिव को निर्देश दिया गया कि वह हलफ़नामा दाखिल कर बताएं कि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों के अलावा अपराधियों के खिलाफ और क्या कदम उठाए गए।
मामले की अगली सुनवाई अब 23 सितंबर, 2025 को होगी।