सरकार को देरी माफ़ कराने का कोई विशेष अधिकार नहीं, सीमाबद्धता कानून को चुनिंदा लोगों के हित में नहीं बदला जा सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Update: 2025-11-10 08:07 GMT

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि देरी माफी कोई सामान्य नियम नहीं बल्कि एक अपवाद है। इसे सरकारी विभाग अपने विशेषाधिकार के रूप में नहीं मांग सकते। अदालत ने कहा कि कानून की सीमाबद्धता (Law of Limitation) सभी पर समान रूप से लागू होती है और इसे चुनिंदा पक्षों को लाभ पहुंचाने के लिए तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी विभागों पर विशेष दायित्व होता है कि वे अपने कार्यों को पूरी सतर्कता और प्रतिबद्धता के साथ निभाएं। उन्होंने टिप्पणी की कि सरकार देरी माफ़ी को अपेक्षित सुविधा की तरह पेश नहीं कर सकती।

खंडपीठ उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य सरकार ने 23 अप्रैल, 2025 के सिंगल बेंच के आदेश को चुनौती देने के लिए निर्धारित समय सीमा से 107 दिन की देरी से अपील दायर की थी। राज्य सरकार ने दलील दी कि देरी आकस्मिक थी और विभागीय प्रक्रियाओं व आवश्यक दस्तावेजों के एकत्रीकरण में समय लगने के कारण यह हुआ। साथ ही नौकरशाही की स्वाभाविक धीमी प्रक्रिया को भी देरी का कारण बताया गया।

अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया, जिनमें Postmaster General v. Living Media India Ltd. (2012), State of Madhya Pradesh v. Ramkumar Choudhary (2024), तथा Shivamma v. Karnataka Housing Board (2025) शामिल हैं। इन सभी में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि सरकार कानून द्वारा समाहित समयसीमा से मुक्त नहीं है और नौकरशाही की देरी को सार्थक कारण नहीं माना जा सकता।

अदालत ने टिप्पणी की कि राज्य सरकार जिस प्रक्रिया का हवाला दे रही है, वह किसी स्पष्ट या ठोस कारण के रूप में सामने नहीं आई। केवल यह कहना कि प्रस्ताव विभाग से होते हुए एडवोकेट जनरल कार्यालय भेजा गया और उसके बाद अपील दायर की गई पर्याप्त स्पष्टीकरण नहीं है। अदालत ने कहा कि यह क्रम न तो विशिष्ट है और न ही किसी वाजिब कारण का संकेत देता है।

हाईकोर्ट ने पाया कि राज्य यह सिद्ध करने में असफल रहा कि देरी सत्यनिष्ठा से या वाजिब कारणों पर आधारित थी। इसलिए अदालत ने अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने से मना करते हुए 107 दिनों की असाधारण देरी को माफ़ करने से इनकार कर दिया।

परिणामस्वरूप अपील को देरी व लापरवाही (Delay and Laches) के आधार पर खारिज कर दिया गया।

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