यमन नागरिक ने अपने परिवार के पासपोर्ट की कथित जब्ती को लेकर मैक्स अस्पताल के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया

Update: 2022-07-12 05:46 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

यमन नागरिक ने शहर के मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की कार्रवाई को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

जस्टिस यशवंत वर्मा की एकल पीठ ने मामले का संज्ञान लिया और दिल्ली पुलिस के साथ-साथ परिवार के दुभाषिए से भी जवाब मांगा। कोर्ट ने कथित कार्रवाई के खिलाफ यमन गणराज्य के दूतावास द्वारा अस्पताल में की गई "गंभीर शिकायत" पर भी ध्यान दिया।

परिवार ने अपने नवजात बेटे के इलाज के लिए अस्पताल से संपर्क किया था, जो मेनिंगोमीलोसेले (स्पाइना बिफिडा) से पीड़ित था। यह रीढ़ की हड्डी के विकास को प्रभावित करने वाला जन्म रोग है। परिवार को भारत का मेडिकल वीजा मिला और तदनुसार अपने बेटे के इलाज के लिए दिल्ली की यात्रा की।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि प्रतिवादी-अस्पताल ने अपने बेटे का इलाज करने के बहाने उस पर मेडिकल ट्रीटमेंट, मेडिकल बिल और रसीद / चालान का कोई विवरण प्रदान किए बिना अत्यधिक शुल्क लगाया। याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि अपने नवजात बेटे को छुट्टी देने के लिए औपचारिकताएं पूरी करने के बहाने उसे अपनी पत्नी और नवजात बच्चे के पासपोर्ट के साथ अपना मूल पासपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया। हालांकि बाद में जब याचिकाकर्ता ने अस्पताल से पासपोर्ट वापस करने का अनुरोध किया तो उसे पहले भुगतान करने को कहा गया। आखिरकार, याचिकाकर्ता का पासपोर्ट तो दिया गया अस्पताल ने पत्नी और नवजात बेटे के पासपोर्ट वापस नहीं किए।

इसके परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता अपनी शिकायतों को लेकर यमन दूतावास पहुंचे। याचिकाकर्ता के अनुसार, यमन के दूतावास ने अस्पताल को पत्र भेजा। इस पत्र में कहा गया कि परफोमा चालान के अनुसार, याचिकाकर्ता के बेटे के इलाज की अनुमानित लागत लगभग 7,000 से 7,500 अमरीकी डालर है, लेकिन याचिकाकर्ता से उक्त राशि का दोगुना शुल्क लिया गया। यमन के दूतावास ने यह भी कहा कि उसे अस्पताल और याचिकाकर्ता द्वारा किराए पर लिए गए दुभाषिया के खिलाफ शिकायत मिली है, क्योंकि उसे मरीज की रिपोर्ट, इलाज के बिल, भुगतान की रसीद आदि नहीं दी गई। दूतावास ने अस्पताल से याचिकाकर्ता को शिशु रोगी और उसकी मां के पासपोर्ट तुरंत सौंपने का अनुरोध किया।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि यमन दूतावास के हस्तक्षेप के बावजूद, अस्पताल ने उसकी पत्नी और बच्चे के पासपोर्ट वापस नहीं किए। इस प्रकार, वह और उसका परिवार यमन वापस नहीं जा सके और भारत आने से पहले बुक किए गए 700 अमरीकी डालर के रिटर्न टिकट बर्बाद हो गया। ऐसे में याचिकाकर्ता को किराये के मकान को और ज्यादा दिन तक किराए पर लेने और दिन-प्रतिदिन के अतिरिक्त खर्च को वहन करने के लिए मजबूर किया गया।

याचिका में कहा गया कि दूतावास के बार-बार प्रयास के बाद अस्पताल ने याचिकाकर्ता को मेडिकल बिल सौंप दिया, लेकिन पासपोर्ट कभी वापस नहीं किए गए।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जबकि उसकी पत्नी और शिशु बच्चे यमन गणराज्य के नागरिक हैं, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता का अधिकार है और भारत के क्षेत्र में कानूनों का समान संरक्षण है। इस प्रकार, उन्होंने अदालत से याचिकाकर्ता और उसके परिवार को तत्काल सुरक्षा और प्रभावकारी उपाय प्रदान करने का अनुरोध किया।

याचिकाकर्ता ने अदालत से परमादेश का रिट जारी करने का अनुरोध किया, जिसमें प्रतिवादियों को पासपोर्ट जारी करने का निर्देश दिया जाए। उन्होंने याचिकाकर्ता के नवजात बच्चे की वर्तमान मेडिकल कंडिशन का पता लगाने के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन के लिए भी प्रार्थना की, जिसका अस्पताल द्वारा दो बार इलाज और ऑपरेशन किया गया है, क्या उसे सही उपचार प्रदान किया गया है।

इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता ने अदालत से प्रतिवादी-अस्पताल द्वारा किए गए कथित घोटाले की जांच करने का अनुरोध किया, जिसके माध्यम से उसे अपने नवजात बच्चे के इलाज के लिए लालच दिया गया; और नवजात शिशु को दिए गए उपचार और याचिकाकर्ता और अस्पताल के बीच पैसे के लेन-देन से संबंधित सभी दस्तावेज जमा किए जाएं।

अस्पताल ने दावा किया कि उसके पास उक्त पासपोर्ट नहीं हैं।

अब इस मामले की सुनवाई 15 जुलाई को होगी।

केस टाइटल: महफूद कासिम अली आमेर अल गरदी बनाम भारत संघ

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