चाइल्ड प्रेग्नेंसी और पोर्न तक आसान पहुंच से चिंतित, केरल हाईकोर्ट ने उचित यौन शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया

Update: 2022-07-22 07:00 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को चाइल्ड प्रेग्नेंसी की बढ़ती संख्या के बीच स्कूलों में पर्याप्त यौन शिक्षा की स्पष्ट अनुपस्थिति पर चिंता व्यक्त की, जो दुर्भाग्य से, अक्सर करीबी रिश्तेदारों द्वारा किए गए यौन शोषण का परिणाम होती है।

जस्टिस वी.जी. अरुण ने अधिकारियों से राज्य के स्कूलों में दी जा रही यौन शिक्षा और इंटरनेट और सोशल मीडिया के सुरक्षित उपयोग पर पुनर्विचार करने को कहा है।

बेंच ने कहा,

''मैं चाइल्ड प्रेग्नेंसी की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त करने के लिए मजबूर हूं, जिसमें कम से कम कुछ मामलों में करीबी रिश्तेदार शामिल होते हैं। मेरी राय में, यह अधिकारियों के लिए हमारे देश के स्कूलों में दी जा रही यौन शिक्षा पर फिर से विचार करने का समय है। इंटरनेट पर पोर्न की आसान उपलब्धता युवाओं के किशोर दिमाग को गुमराह कर सकती है और उन्हें गलत विचार दे सकती है। अपने बच्चों को इंटरनेट और सोशल मीडिया के सुरक्षित उपयोग के बारे में शिक्षित करना नितांत आवश्यक है।''

कोर्ट ने यह भी दर्ज किया कि एक अन्य बेंच जमानत आवेदन में इस मुद्दे पर विचार कर रही थी, जहां संबंधित कानूनों के बारे में बेहतर जागरूकता सुनिश्चित करने के लिए कुछ निर्देश जारी किए जाने का इरादा था।

कोर्ट ने याद करते हुए कहा कि, ''न्यायाधीश ने यह भी नोट किया है कि राज्य की शैक्षिक मशीनरी छोटे बच्चों को यौन संबंधों के परिणाम के बारे में आवश्यक जागरूकता प्रदान करने में अपर्याप्त साबित हुई है।''

अदालत एक 13 वर्षीय लड़की की मां द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसका उसके नाबालिग भाई ने यौन शोषण किया था और इस तरह वह 30 सप्ताह की गर्भवती थी।

इतनी कम उम्र में गर्भ धारण करने का शारीरिक तनाव और मनोवैज्ञानिक प्रभाव और परिणामी मानसिक तनाव को गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के लिए न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग करने के कारणों के रूप में पेश किया गया था। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट शमीना सलाहुद्दीन ने किया।

'' नाबालिग लड़की को अपनी गर्भावस्था के बारे में पता भी नहीं था, यह तथ्य तब सामने आया जब याचिकाकर्ता पेट में दर्द होने व दो महीने से अधिक समय तक उसके पीरियड्स मिस होने के बाद नाबालिग लड़की को एक डॉक्टर के पास लेकर गई। शारीरिक परीक्षण, उसके बाद एक प्रयोगशाला परीक्षण से पता चला कि लड़की 30 सप्ताह की गर्भवती है। तुरंत, लड़की अपनी असहाय मां के जरिए इस अदालत की शरण में पहुंची।''

सरकारी वकील एस. अप्पू ने प्रस्तुत किया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत, अधिकतम अनुमेय गर्भावधि अवधि 24 सप्ताह है, जबकि इस मामले में, गर्भावस्था 30 सप्ताह को पार कर चुकी है। उन्होंने बताया कि छूट केवल उन मामलों में उपलब्ध है जहां मेडिकल बोर्ड द्वारा किसी भी संतोषजनक भ्रूण असामान्यता के पाए जाने के बाद टर्मिनेशन की आवश्यकता होती है।

अदालत ने पाया कि महिलाओं की विशिष्ट श्रेणियों को अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए योग्य माना जाता है, जिसमें यौन उत्पीड़न या बलात्कार की पीड़िता, या कौटुम्बिक व्यभिचार की शिकार महिलाओं के साथ-साथ नाबालिग भी शामिल हैं। इस मामले में पीड़िता एक रेप सर्वाइवर और एक नाबालिग है, और इसमें कौटुम्बिक व्यभिचार (सगे-संबंधी द्वारा किया गया यौन शोषण) भी शामिल है।

जज ने कहा,

''मैं अजन्मे बच्चे के अधिकारों के प्रति सचेत रहते हुए पीड़िता के पक्ष में झुकता हूं। यह ध्यान रखना उचित है कि एक महिला के प्रजनन विकल्प बनाने के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है, जो निश्चित रूप से उचित प्रतिबंधों के अधीन है।''

एकल न्यायाधीश ने पाया कि अदालतें अक्सर पीड़िता की उम्र को देखते हुए अनुमेय सीमा से अधिक की गर्भावधि की चिकित्सा समाप्ति की अनुमति देने के पक्ष में रही हैं।

विशेष रूप से, इसी पीठ ने हाल ही में एक अन्य 15 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की सहायता के लिए उसे 24 सप्ताह की गर्भावस्था की चिकित्सकीय समाप्ति करवाने की अनुमति दी थी।

इसलिए, शारीरिक कठिनाइयों, मानसिक पीड़ा और मेडिकल बोर्ड की राय पर विचार करते हुए, जस्टिस अरुण गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति की अनुमति देने के लिए इच्छुक थे।

तद्नुसार, याचिकाकर्ता को एक सरकारी अस्पताल में पीड़ित लड़की के गर्भ को समाप्त करवाने की अनुमति दे दी गई,जिसके लिए उनको एक अंडरटेकिंग देनी होगी कि उनके जोखिम पर सर्जरी करने के लिए अधिकृत किया जा रहा है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि बच्चा जन्म के समय जीवित है, तो अस्पताल यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चे को उपलब्ध सर्वाेत्तम चिकित्सा उपचार दिया जाए। इसी तरह, यदि याचिकाकर्ता बच्चे की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है, तो राज्य और उसकी एजेंसियां इसकी पूरी जिम्मेदारी लेंगी और बच्चे को चिकित्सा सहायता और सुविधाएं प्रदान करेंगी।

केस टाइटल- एक्स बनाम भारत संघ व अन्य

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केरल) 368

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