वैवाहिक घर में महिला का सुसाइड करना अपने आप में पति, ससुराल वालों को उत्पीड़न, उकसावे के लिए उत्तरदायी नहीं बनाता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2023-06-26 07:27 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़ा एक मामला आय़ा। कोर्ट ने मामले में आरोपियों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा। और कहा कि वैवाहिक घर में एक महिला का सुसाइड करना अपने आप में उसके ससुराल वालों और पति को उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए उत्तरदायी नहीं बनाता है।

केस के मुताबिक, साल 2002 में वैवाहिक घर में महिला ने आत्महत्या कर ली थी। महिला के पिता ने आरोप लगाया कि सुसराल वाले दहेज की मांग करते थे और महिला का उत्पीड़न करते थे। इसलिए उसने आत्महत्या कर ली। हालांकि मामले में ट्रायल कोर्ट ने 2006 में आरोपियो को बरी कर दिया था।

जस्टिस एन.एस. शेखावत ने कहा,

“अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर मृतक का अपमान करना, अपने आप में आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है।

आगे कहा- अभियोजन पक्ष को ये साबित करना होगा कि आरोपी का कृत्य इंटेशन के साथ मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

अदालत ने कहा- पति और ससुराल वालों ने अपराध किया है ये साबित करने के लिए कोई ठोस या निर्णायक सबूत नहीं है। और किसी व्यक्ति को आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी ठहराने के लिए अपराध करने की मंशा अनिवार्य है।

ससुराल वालों और पति को बरी करने के खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। उसी हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा था। ससुराल वालों और पति पर मृतक पत्नी को आईपीसी की धारा 306 और धारा 34 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था।

शिकायत के मुताबिक महिला का पति उससे दहेज की मांग करता था और पैसे न देने पर उसे मारने-पीटने की धमकी देता था। महिला की मृत्यु से लगभग एक सप्ताह पहले परिवार वाले उससे मिलने गए थे, तब उसने बताया था कि ससुराल वाले उसे परेशान कर रहे हैं।

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि पति ने नकली दवाओं की फैक्ट्री स्थापित करने के लिए 3 लाख रुपए मांगे थे। चार दिनों के भीतर पैसे नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दी थी।

आगे कहा गया कि ट्रायल कोर्ट का आरोपियों को बरी करने का फैसला सही नहीं था।

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीले सुनी, सबूतों को देखा और कहा- महिला के पिता ने स्वीकार किया है कि शादी के 18 साल के दौरान उसकी बेटी ने कभी भी दुर्व्यवहार की शिकायत नहीं की थी। पति की ओर से कार यानी दहेज की मांग की भी पुलिस में कोई शिकायत नहीं की गई थी। शादी के समय भी कोई दहेज की मांग नहीं की गई थी।

कोर्ट ने आगे कहा- अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा है। और केवल इसलिए कि महिला ने वैवाहिक घर में आत्महत्या कर ली, अपने आप में उसके ससुराल वालों और पति को उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए उत्तरदायी नहीं बनाता है।

केस टाइटल :हरियाणा राज्य बनाम दर्शन लाल और अन्य

उपस्थिति: शीनू सूरा, डीएजी, हरियाणा।

प्रतिवादी की ओर से वकील एस.पी. अरोड़ा, हिम्मत सिंह सिद्धू के साथ।

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