क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान गवाहों के बयान विरोधाभासी : गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बहू की कथित हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा रद्द की
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उन गवाहों के साक्ष्य क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान विरोधाभासी थे,जिन्होंने कथित तौर पर मृतका को मृत्यु से पूर्व बयान देते हुए सुना था।
जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा और जस्टिस मालाश्री नंदी की खंडपीठ ने कहा,
“ट्रायल कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पीडब्ल्यू-3, पीडब्ल्यूू-4, पीडब्ल्यू-9 और पीडब्ल्यूू-10 के साक्ष्य, जिसका आशय यह है कि उन्होंने मृतका को यह कहते हुए सुना था कि उसे उसके पति व अपीलकर्ताओं ने जबरन जहर दिया था, मृत्यु पूर्व दिए गए बयान के समान हैं। हालांकि, जैसा कि पहले कहा गया है, पीडब्ल्यू-3, पीडब्ल्यू-4, पीडब्ल्यू-9 और पीडब्ल्यू-10 के साक्ष्य विरोधाभासी हैं। इस प्रकार, यह नहीं कहा जा सकता है कि मृतका ने अपीलकर्ताओं को उन व्यक्तियों के रूप में दर्शाते हुए मृत्यु पूर्व बयान दिया था,जिन्होंने उसे जबरन ज़हर दिया था।’’
अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि शिकायतकर्ता (पीडब्ल्यू-2) ने मई 2010 में धोलाई पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी के पास एक एफआईआर दर्ज करवाई थी, जिसमें कहा गया था कि उसकी बेटी को उसके पति और उसके दो रिश्तेदारों (अपीलकर्ताओं) ने जबरन जहर दे दिया और जिसके कारण उसकी मौत हो गई।
एफआईआर के आधार पर अपीलकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। जांच पूरी होने के बाद पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया। आरोप पत्र में जांच अधिकारी ने अन्य दो आरोपियों को इस आधार पर आरोपमुक्त करने की प्रार्थना की थी कि उसे उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है।
हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने तीनों आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 रिड विद 34 के तहत आरोप तय किए।
मुकदमे की कार्यवाही के दौरान, मृतका के पति की मौत हो गई। इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि शेष दो आरोपी यानी अपीलकर्ता, मृतका को जहर देकर उसकी हत्या करने के अपराध के दोषी हैं और तदनुसार उन्हें आईपीसी की धारा 302/34 के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
अपीलकर्ताओं की ओर से उपस्थित वकील ने प्रस्तुत किया कि यद्यपि अभियोजन गवाह संख्या (पीडब्ल्यू) 2, 3, 9 और 10 के साक्ष्य इस आशय के हैं कि मृतक को तीनों आरोपी व्यक्तियों द्वारा जबरन जहर दिया गया था, परंतु इन गवाहों के साक्ष्यों का सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिए गए उनके बयानों से सामना कराकर खंडन किया गया था, जिसकी बाद में आई.ओ. द्वारा पुष्टि की गई थी।
न्यायालय ने कहा कि पीडब्ल्यू-2, पीडब्ल्यू-3,पीडब्ल्यू-9 और पीडब्ल्यू-10 का सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिए गए उनके बयानों से सामना कराया गया था, जो ट्रायल कोर्ट के समक्ष दर्ज किए गए उनके साक्ष्य के साथ मेल नहीं खाते थे, इस प्रकार उनके साक्ष्य अपीलकर्ताओं द्वारा विरोधाभासी पाए गए हैं।
कोर्ट ने वी.के. मिश्रा व अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य व अन्य (2015) 9 एससीसी 588 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया,जिसमें यह माना गया था कि एक गवाह का सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पुलिस के समक्ष दिए गए उसके पिछले बयान के साथ सामना कराया जाना चाहिए, ताकि उसके साक्ष्य की रिकॉर्डिंग के समय उसके बयान का खंडन किया जा सके और उसे अविश्वसनीय करार दिया जा सके।
न्यायालय ने कहा,
“जैसा कि अभियोजन पक्ष के गवाह संख्या 2, 3, 9 और 10 द्वारा दिए गए सबूतों से देखा जा सकता है, उन्होंने बताया था कि उन्होंने मृतक को अपने पति और अपीलकर्ताओं पर उसे जबरन जहर देने का आरोप लगाते हुए सुना था, जिसके कारण वह मर गई। हालांकि, क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिए गए उनके बयान के आधार पर उनके द्वारा दिए गए साक्ष्य का खंडन किया गया है। ये विरोधाभास केस के जांच अधिकारी (पीडब्ल्यू-13) द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष उसके क्रॉस एक्जामिनेशन के समय साबित किए गए हैं।’’
इस प्रकार, अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस नतीजे पर पहुंचकर गलती की है कि मृतक ने अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराते हुए मृत्यु पूर्व बयान दिया था, जिन्होंने उसे जबरन जहर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा,‘‘चूंकि मृतक की मौत में अपीलकर्ताओं की संलिप्तता दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है, इसलिए हमारा मानना है कि अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 302/34 के तहत आरोप से बरी करना होगा, क्योंकि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ताओं का अपराध सभी उचित संदेह से परे साबित करने में सक्षम नहीं है।’’
केस टाइटल- श्रीमती पुष्पा रानी डे व अन्य असम राज्य व अन्य
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (जीएयू) 81
कोरम- जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा और जस्टिस मालाश्री नंदी
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